देखिए हमारे पास कुल पांच ज्ञानेंद्रियां होती हैं, मतलब 5 सेंसेज, जिससे हम अपने सराउंडिंग की इंफॉर्मेशन लेते हैं, हम देखकर इंफॉर्मेशन लेते हैं, हम सुन कर information लेते हैं, हम स्मेल करके इंफॉर्मेशन लेते हैं। किसी भी चीज को चख कर इंफॉर्मेशन ले सकते हैं, या वस्तु को छूकर के भी हम उसके बारे में जानकारी ले सकते हैं, मतलब केवल 5 प्रकार से ही हम इंफॉर्मेशन लेता है।
और इन पांच ज्ञानेंद्रियों में से 80% इंफॉर्मेशन हम लेते हैं, अपने आंख से… अगर बाकी के चार काम ना करें, तो वह हमारी आंख ही है जो हमें डेंजर से बचाएगा। मतलब इतना ज्यादा इंपॉर्टेंट है हमारी आंख। आप कह सकते हो कि हमारे शरीर का वन ऑफ द मोस्ट एंड मोस्ट इंपोर्टेंट ऑर्गन…
देखे हमारा चैनल एक साइंस चैनल है, जिसमें मैं आपको काफी इंफॉर्मेशन देता हूँ, आपके जीवन को आसान बनाने के लिए… और अगर मैं आपको यह ना बताऊं कि हमारी आंख काम कैसे करती है, यह देखते कैसी है, तो यह बिल्कुल भी न्याय नहीं होगा, इसलिए आज हम इस वीडियो में यही जानेंगे कि हमारी यह आंख काम कैसे करती है। और इसके बारे में हम बहुत ही डिटेल में जानेंगे, तो चलिए जानते हैं, वीडियो अच्छा लगेगा तो आप लाइक जरूर करना….
देखिए सबसे पहले तो हमें अपने आंख की संरचना के बारे में जानना पड़ेगा। जब हम अपने आंख की संरचना को देखेंगे, तो हम पाएंगे कि हमारा यह जो आईबॉल है, यह तीन परतों से मिलकर बना हुआ है, जिसके बारे में हम बाहर से अंदर की ओर हम जाने का प्रयास करेंगे…
सबसे पहले तो हमारी आंख हमारे चेहरे और हमारी कपाल के हड्डियों से मिलकर बने हुए कोटरों में रहती है। जिसे orbital cavity कहते हैं।
इन eye ऑर्बिट के अंदर से ही हमारे आईबॉल के सराउंडिंग में कुछ मसल्स होती हैं, जो हमारे आईबॉल को move में मदद करते हैं, इन मसल्स के नाम आप देख लीजिये और यह सभी मसल दिमाग से आये nerve से कंट्रोल होती हैं। मतलब जब हम अपने आंख को घुमाने का प्रयास करते हैं, किसी भी डायरेक्शन में, तो इन्हीं मसल्स के थ्रू ही हम आंखों को मूव कर पाते हैं।
देखिए जब हम अपनी आंख को बाहर से देखेंगे तो तो हमारा आईबॉल बाहर से सफेद रंग का होता है। जहां पर मैं एरोसे पॉइंट कर रहा हूं, जो आंख का portion हमारे आई ऑर्बिट के अंदर रहता है, उसे sclera कहते हैं। और यही sclera बाहर की ओर आकर मतलब आईबॉल के इंटीरियर पार्ट में थोड़ा सा convex shape की हो जाती है, जिसे cornea कहा जाता है, यह बाहरी लेयर हमारे आईबॉल का fibrous tissue से बना रहता है.
फिर इस sclera से जब हम नीचे आते हैं, तब हम हमारे आईबॉल के दूसरे लेयर को पाते हैं, जिसे को choroid कहते हैं, यह choroid बहुत ही ज्यादा vascular होती है। मतलब इसमें बहुत सारे ब्लड वेसल्स होती हैं choroid layer हमारे आईबॉल में पीछे की ओर होता है, और यही choroid आगे आकर cilliary body के रूप में बदल जाता है। जिससे एक लोंगिट्यूडनल डायाफ्राम जुड़ा रहता है, जिसे iris कहते हैं, और इसी आयरिश के पीछे की ओर हमारे आंखों का लेंस होता है, जो कि एक लिगामेंट से इसी सिलियरी बॉडी से ही जुड़ा रहता है।
जब हम अपने आईबॉल के दूसरे layer से अंदर की ओर जाएंगे, तो हम पाएंगे हमारे आईबॉल की तीसरी लेयर को…. जिसे रेटीना कहते हैं. यह रेटीना भी 2 लेयर से बना रहता है. बाहर की ओर यह हाईलीपिगमेंटेड ले से बना रहता है, जिसका काम होता है, लाइट को absorb करने का और अंदर की ओर यह एक न्यूरल लेयर से बना रहता है। जिसके अंदर कई सारे रिसेप्टर होते हैं, जो हमारे आंख से light rays को कैच करते हैं।
अब देखिए हमारे आईबॉल के भीतर लेंस के पीछे की ओर एक पारदर्शी और gell लाइक सब्सटेंस भरा रहता है, जिसे vitreous humor कहते हैं। इसकी वजह से ही हमारा आईबॉल शेप में रहता है, वह पिचक नहीं पाता है।
और जहां पर मैं अभी आ रहा हूं पॉइंट कर रहा हूं, यहां पर भी एक फ्लूइड भरा रहता है, जोकि हमारे आयरिश को और कॉर्निया को न्यूट्रिशन प्रदान करता है, इसे aqueous humor कहते हैं।
जहां पर मैं अभी एरोसे पॉइंट कर रहा हूं, इसे हमारे आईबॉल का पोस्टीरियर चेंबर कहते हैं, यहां पर भी यह fluid भरा रहता है।
देखिए हमारे आईबॉल से पीछे की ओर हमारे दिमाग से निकलने वाली दूसरी क्रेनियल नर्व ऑप्टिक नर्व आकर जुड़ी रहती है। जो कि हमारे आंख से आने वाले सिग्नल को हमारे ब्रेन तक ले जाती है, और हम किसी भी चीज को देख पाते हैं।
तो चलिए इंतजार किस बात का है, अब हमें यह जानना है कि हमारे आंख काम कैसे करती है, यह चीजों को देखती कैसे हैं।
देखें जब हम अपने आंख को सामने से की ओर से देखते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारी आंख एक सफेद रंग की बॉल है, जिसके बीच में एक गोल सा रंग बिरंगा संरचना है, जिसे आयरिश कहते हैं। और इस संरचना के बीच में भी एक गहरे काले रंग की एक छेद बना हुआ है, जिसे pupil कहते हैं।
देखिए यह रंग-बिरंगे संरचना आइरिश का काम क्या होता है, यह हमारे pupil के आकार को घटाता बढ़ाता है, होता यह है कि जब हमारे आंख को बहुत ज्यादा रोशनी मिलती है, दिन के टाइम में जब सूरज निकला रहता है या जब बहुत ज्यादा लाइट जलती रहती है।
तब हमारे pupil का आकार ये आयरिश छोटा कर देता है, ताकि कम से कम लाइट हमारे आंखों में आए, और हमारे आंखों के रिसेप्टर जल ना जाए। और जब अंधेरा का टाइम हो जाता है, जब हमें ज्यादा लाइट की जरूरत पड़ती है, किसी भी चीज को देखने के लिए, तो हमारा pupil का आकार बड़ा हो जाता है।
अब देखिए जैसे ही किसी वस्तु से लाइक टकराकर हमारे pupil के अंदर आती है, तो वैसे ही लाइट की rays सबसे पहले हमारे lens से जाकर टकराती है।
देखें अगर जिस वस्तु को हम देख रहे हैं वह वस्तु बहुत ही दूर की होगी, तो लेंस क्या करेगा, उस दूर से आने वाली वस्तु के rays को एडजस्ट करने के लिए, अपने आप को फैला लेगा, और अगर जिस वस्तु को हम देख रहे हैं, वह बहुत पास में होगी, तो lens अपने आप को सिकोड़ कर छोटा कर लेगा, जिससे वह वस्तु के rays को रेटिना पर आसानी से bend कर पाये।
और लेंस को छोटा बड़ा करने के लिए, जो सिकुड़ने का काम है वह यह सिलियरी मसल्स ही करता है।
अब देखिए एक बार rays हमारे लेंस से होकर, vitrous fluid के थ्रू हमारे रेटिना पर पड़ी, रेटिना पर इस लाइट को कैप्चर करने के लिए, 2 receptor होते हैं, cone cell और rod cell.
यह जो cone cell होती है, यह हमें ब्राइट लाइट को डिटेक्ट करने में मदद करती है। और यह लाइट को भी ये 3 फॉर्म में ही डिटेक्ट करती है, यानी इस रेटिना में तीन प्रकार के cone cell पाए जाते हैं, red cone cell… रेड लाइट यानी हायर वेवलेंथ के लाइट को डिटेक्ट कर पाती है, ग्रीन कोन सेल, मीडियम वेवलेंथ के लाइट को और blue cone cell shorter वेवलेंथ की लाइट को डिटेक्ट कर पाती है।
इसके अलावा हमारे रेटिना पर मौजूद दूसरी रिसेप्टर rod cell हमें ब्लैक एंड वाइट लाइट को देख सकते है। रात के अंधेरे में जब कम लाइट होती है, उस समय में देखने में यह मदद करता है।
अब देखिए क्योंकि हमारी आंख आगे की ओर curved होती है, इसीलिए जब भी कोई लाइट हमारे आंख में प्रवेश करती है, यह लाइट को bend कर देती है। जिससे जो भी इमेज हम देखते हैं, असल में वह हमारे रेटिना में, upside-down बनता है, मतलब उल्टा बनता है।
जब रेटिना पर किसी भी वस्तु का लाइट rays रेटिना पर पाए जाने वाले रिसेप्टर्स से कैच हो जाता है। तो उसके बाद यह इलेक्ट्रिकल सिग्नल में कन्वर्ट होकर, हमारे ऑप्टिक नर्व के थ्रू हमारी ब्रेन में चले जाते हैं।
लेकिन जितना साधारण शब्दों में मैं आपको बता रहा हूं, यह बात यह उतना साधारण नहीं होता, अगर मैं आपको डिटेल में बताने लगा लूंगा तो, आप बहुत ज्यादा बोर हो जाओगे और यह बहुत ज्यादा कॉन्प्लिकेटेड है। इसलिए साधारण भाषा में ही इसे समझने का प्रयास कीजिए।
अब चुकी, हमारे पास दो आंख होती है, तो हमारी दोनों आंख से दो ऑप्टिक नर्व ब्रेन में अंदर की ओर प्रवेश करती है, और जब यह ब्रेन में अंदर की ओर प्रवेश करती है, तब इनमें से कुछ ऑप्टिक नर्व आपस में एक दूसरे को क्रॉस करके, ऑपोजिट साइड में चले जाते हैं, और कुछ और बिल्कुल अपने ही साइड होते हुए ब्रेन के अंदर जाते हैं, जैसे अभी आप इमेज में देख रहे हैं।
ऑप्टिक नर्व का आपस में एक दूसरे के क्रॉस करने को optic chiasma कहते हैं। optic chiasma के वजह से ही हम अपने आंखों से, binocular vision कर सकते हैं। मतलब अपने दोनों ही आंखों से किसी एक चीज पर फोकस कर सकते हैं। 180 डिग्री के सराउंडिंग में देख सकते हैं, 3d में।
जैसे ही यह nerve optic chiasm को पार करते हैं, यह optic tract कहा जाने लगता हैं। और हमारे thalamus से जाकर मिल जाता हैं।
देखिए thalamus में जाने से पहले भी कुछ optic tract ब्रेन के various part में चले जाते हैं। जैसे ब्रेन स्टेम में और हाइपोथैलेमस वगैरह में। और यह फाइबर हमारे आंखों को मूवमेंट देने के लिए, हम को नींद आने के लिए, जो हमारी तीसरी आंख हैं पीनियल gland को activate करने जैसे चीजों में मदद करते हैं।
लेकिन देखने के लिए मुख्यतः optic tract थैलेमस में ही जाते हैं।
Thalamus सिग्नल को brain के various part में भेज देता है, जैसे पैराइटल लोब और टेंपोरल लोग जैसे जगहों पर, जहां पर वेस्टिब्यूलर syatem के combination के साथ brain कलर, size के accuracy के साथ हमें इमेजेस को 3डी में देखने के लिए प्रोसेस करके, इन सारे सिग्नल को हमारे ब्रेन के occipital lobe में भेज देता है। जहां पर हमारा विजुअल कॉर्टेक्स होता है, जो हमारे इमेजेस को प्रोसेस करके हमें 3D में बिल्कुल 3d के साथ उस इमेज को हमें दिखाता है।