क्या आपको पता है कि इंटरनेट कैसे काम करता है, आप अपने मोबाइल में अभी यह यूट्यूब वीडियो देख रहा है, आपको लग रहा होगा कि यह जो यूट्यूब का वीडियो आप देख रहे हैं, वह किसी सेटेलाइट से या मोबाइल टावर के सिग्नल से आपके मोबाइल फोन में रेडियो वेव आ रही है और आप इंटरनेट एक्सेस कर पा रहे हो। लेकिन क्या हो अगर मैं आपसे यह कहूं कि इंटरनेट का बहुत ही थोड़ा सा भाग, बहुत ज्यादा थोड़ा सा भाग रेडियो वेब से काम करता है, बाकि पूरा का पूरा इंटरनेट पूरे वर्ल्ड में फैले wires पर काम करता है, यानी तार पर..
एक स्पेशल किस्म की तार जिसमें डेटा को लाइट के रफ्तार के बराबर ट्रैवल करवाते हुए डाटा को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है। सुनने में अजीब लग रहा है ना, चलिए आपको पूरी बात बताते हैं और यह जानकर आप amazed हो जाओगे…
जैसे पूरी दुनिया भर में सारे देश, कई सारे कॉन्टिनेंट आपस में ट्रांसपोर्टेशन को बेहतर बनाने के लिए रोड का नेटवर्क बनाए हुए हैं, railways का नेटवर्क बैठाये हुए है, मतलब आप जमीन को ही पकड़े पकड़े एक जगह से दूसरी जगह चले जाओगे, रेलवे या किसी गाड़ी के माध्यम से। ठीक उसी तरह दुनिया भर में कई देशों की गवर्नमेंट ने मिलकर समुद्र के नीचे, जमीनों के नीचे, पहाड़ के ऊपर से पहाड़ के नीचे से कुछ ऐसे तार बिछाए हैं जिन्हें ऑप्टिकल फाइबर कहते हैं, जो कि डाटा को लाइट की स्पीड से ट्रांसफर करवाते हैं।
देखिये होता क्या हैं, दुनिया भर की बड़ी-बड़ी कंपनियां समुद्र में ऑप्टिकल फाइबर को बिछाने का काम करती है, गवर्नमेंट के टेंडर से। और यह ऑप्टिकल फाइबर समुद्र में 8 किलोमीटर तक नीचे भी हो सकता है एक बार इस एनिमेशन से देखिए कैसे दुनिया भर के कॉन्टिनेंट जैसे अफ्रीका एशिया और यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे कॉन्टिनेंट एक दूसरे से ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से जुड़े हुए हैं और ये सब optical फाइबर इस समुद्र के नीचे हैं, है ना बिलकुल कमाल की बात। अब देखिए इंटरनेट को चलाने के लिए यह सबसे पहला phase होता है। अगर यह ना हो तो इंटरनेट बिल्कुल भी काम नहीं कर पाएगा।
फिर देखिए क्या होता है जैसे ही एक देश को इस ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया जाता है जैसे भारत के केस में यह ऑप्टिकल फाइबर का एक एंड समुद्र में मुंबई में है, चेन्नई में है, तूतीकोरिन में है और केरल के कुछ भाग में है।
उसके बाद इस ऑप्टिकल फाइबर वाले नेटवर्क को पूरे देश भर के जमीन में फैलाना होता है, तो अब क्या होता है अब नेशनल लेवल की कुछ कंपनियां पूरे भारत भर में पहाड़ों के ऊपर से, जमीन के नीचे से, जहां से भी हो सके इन ऑप्टिकल फाइबर को पूरे देश भर में फैल आएगी। और इसे समुद्र के नीचे वाले ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया जाएगा।
देशभर में यह अटकल फाइबर जैसे ही फैल जाता है, उसके बाद उसे कुछ tr3 की कंपनियां जैसे कुछ स्पेसिफिक शहर की या किसी छोटे से राज्य की कंपनियां अब इसी ऑप्टिकल फाइबर को इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से लोगों के घरों में पहुंचा देगी। जैसे local broadband कंपनी और अगर कोई कंपनी इसे मोबाइल सिम के माध्यम से लोगों को डाटा प्रोवाइड करना चाहती है तो यही ऑप्टिकल फाइबर एक बड़ी सी टावर में कनेक्ट हो जाएगा और वहां से यह टावर अपने नजदीकी वाले क्षेत्रों में सिग्नल को transfer करके लोगों तक इंटरनेट मुहैया करवा देगा।
अब यह तो हुआ इंफ्रास्ट्रक्चर की बात कि कैसे इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर के बदौलत इस पूरी दुनिया भर में चल रहा है, अब हमें यह जानना है कि इंटरनेट चलता कैसे हैं।
देखिए सारी व्यवस्था हो गई है पूरी दुनिया भर में तार बिछाया जा चुका है, बस व्यवस्था जिस चीज की करनी है, वो ये करनी है कि डाटा अगर किसी मोबाइल फोन तक पहुंचाना है या कंप्यूटर तक पहुंचाना है तो सबसे पहले तो हमें उसका पता मालूम होना चाहिए यानी उसका एड्रेस पता होना चाहिए। हमें किस एड्रेस से, किस पते से डाटा को किस पते पर डिलीवर करना है इसकी व्यवस्था हमें करनी पड़ेगी।
इसके लिए सबसे अच्छा उपाय यह है कि हर एक मोबाइल फोन हर एक कंप्यूटर हर एक सरवर को एक एड्रेस दे दिया जाए, एक पता दे दिया जाए जिससे जब भी किसी डाटा को एक जगह से दूसरी जगह भेजना हो, तो डाटा signal को यह मालूम हो कि उसे किस पते पर जाकर लैंड होना है। और वह व्यवस्था है जिसमें हर एक मोबाइल को हर एक सरवर को एड्रेस दे दिया जाता है उसे कहते हैं आईपी ऐड्रेस।
चलिए एक उदाहरण से अब आपको सारी बातें समझाते हैं, देखिये अगर आपको हिमालय की फोटो देखनी है और उसे डाउनलोड करना है। तो सबसे पहले आप गूगल पर हिमालय फोटो को सर्च करते हो, जैसे ही आप हिमालय की फोटो को सर्च करते हो तो गूगल आपको कई सारा रिजल्ट दे देगा। इसमें से कोई एक इमेज आपको पसंद आ गई है और आप उसको डाउनलोड करना चाहते हो।
तो होगा क्या जिस किसी स्पेसिफिक वेबसाइट पर वह इमेज होगी, मान लीजिए वह वेबसाइट का डाटा सेंटर इंग्लैंड में कहीं पर है, तो सबसे पहले यह कमांड आपके मोबाइल से या कंप्यूटर से होते हुए पास के टावर से होते हुए भारत भर में फैले हुए ऑप्टिकल फाइबर के जाल से होते हुए समुद्र में चला जाएगा और यह सिग्नल समुद्र में होते हुए इंग्लैंड के उस वेबसाइट के डाटा सेंटर में चला जाएगा।
फिर वहां से यह इमेज के डाटा, पैकेट के फॉर्म में छोटे छोटे रूप में कई सारे भाग में समुद्र से होते हुए, फिर भारत में फैले हुए ऑप्टिकल फाइबर से होते हुए, आपके नजदीकी टावर से होते हुए आपके मोबाइल पर यह सिग्नल आ जाएगा। और आपकी मोबाइल आपसे पूछेगा कि क्या आप यह इमेज डाउनलोड करना चाहते हो, आप जैसे ही डाउनलोड पर क्लिक करेंगे वह सारा डाटा आपके मोबाइल में डाउनलोड हो जाएगा।
पर ध्यान रहे जब भी यह डाटा इंग्लैंड के डाटा सेंटर से भारत में आएगा उसे यह बात पता होगी कि उसे किस मोबाइल पर जाना है यानी उसे वह आईपी एड्रेस भी पता होगा जहां पर उसे यह डेटा प्रोवाइड कराना है, ऐसा नहीं होगा कि वह डाटा किसी और के मोबाइल फोन में चला जाएगा। जैसे आपका पोस्टल अड्रेस होता हैं वैसे ही आपके मोबाइल का, आपके कंप्यूटर का, या किसी वेबसाइट का ip address उसका पोस्टल अड्रेस होता हैं।