कान कैसे सुनता है – how do we hear sound in hindi

हमारे पांचों सेंस ऑर्गन हमारे चेहरे पर मौजूद हैं, जिनकी वजह से हम इंफॉर्मेशन, अपने ब्रेन तक पहुंचाते हैं, और ज्ञान को प्राप्त करते हैं। हमारी आंख हमारे चेहरे पर है, हमारे कान, हमारे नाक हमारी जीभ और हमारी त्वचा यह पांचों की पांचों हमारे चेहरे पर पाई जाती हैं। इसीलिए तो हमारा चेहरा हमारे बॉडी का सबसे इंपॉर्टेंट पार्ट है। चेहरे को ही तो देख कर हम किसी व्यक्ति को समझ पाते हैं, उसके हाव-भाव वगैरह और समझने के लिए यही सब ऑर्गन काम में आते हैं….

एक post में हमने आंख के बारे में बात कर लिया है कि हमारी आंख देखती कैसे है, आज इस post में हम यह जानेंगे कि हमारा यह कान सुनता कैसे है, यह काम कैसे करता है और इसके काम क्या-क्या है, हालांकि हमारे कान का सुनने के अलावा भी बहुत कुछ काम है, जिसके बारे में हम जानेंगे…

लेकिन हम सब जानते हैं कि हमारा कान हमें सुनने में मदद करता है और हम अपने जीवन में जितना भी इंफॉर्मेशन लेते हैं, अपने फाइव सेंसेस में से उसमें से 13% इंफॉर्मेशन हम अपने कान से ही लेते हैं मतलब सुनकर लेते हैं। इसलिए हमे यह जानना जरूरी हो जाता है कि हमारा कान आखिर काम कैसे करता है।

देखें सबसे पहले हम ये जानते हैं कि हमारा कान बना कैसे हुआ है, इसके एनोटोमी को एक बार देख लेते हैं। देखिये जब हम अपने कान की संरचना को देखते हैं तो हम पाते हैं कि हमारा कान तीन part में बटा हुआ है।

Outer ear
Middle ear
Inner ear

कान का यह हर एक part अलग-अलग काम करता है, अलग-अलग सब का फंक्शन है, सभी साउंड को प्रोसेस करने का काम करते हैं। चलिए जानते हैं सब के बारे में…

हमारा यह जो outer ear होता है, यह बना होता है, pinna से, जो हम अपने कान को बाहर से देखते हैं, बिल्कुल पत्ते की तरह निकला रहता है। इसे pinna कहते हैं, और इसी pinna के बीच में गड्ढा होता है, जिसे concha कहते हैं, और इसी pinna के बीच में छेद होता है, जो कि लगभग 3 सेंटीमीटर लंबा कैनाल बनाता है, जिसे external auditory meatus कहते हैं।

देखिये pinna का काम क्या होता है, यह pinna move नहीं कर सकता है, जैसे बाकी animals अपने कान को हिला सकते हैं, यह स्थिर रहता है और इसका काम यह होता है कि यह हमारे surrounding में जो भी आवाज आती है। आवाज़ का मतलब जो भी एयर प्रेशर में वेरिएशन होता है, उसे वातावरण से कैप्चर करके यह साउंड वेव को एक्सटर्नल ऑडिटरी मीटअस में transmit कर देता है।

उसके बाद जैसे ही है साउंड की ये एनर्जी बिल्कुल फोकसिंग के साथ हमारे एक्सटर्नल ऑडिटरी मीटअस में प्रवेश करती है, यह हमारे ऑडिटरी कैनाल के एंड पर मौजूद ईयर ड्रम जिसे टिंपैनिक मेम्ब्रेन भी कहते हैं, वहां पर जाकर टकराती है।

इस ear ड्रम के दूसरी हमारे कान का मिडल इयर स्टार्ट हो जाता है। जोकि तीन छोटी-छोटी हड्डियों से मिलकर बना हुआ होता है। यह हमारे शरीर में पाए जाने वाली सबसे छोटी हड्डियां होती हैं। देखिये जब ईयर ड्रम, बाहर से आने वाले साउंड वेव की वजह से वाइब्रेट करने लगता है, तो इसी ear drum से हमारी के तीनो छोटी-छोटी हड्डियां जुड़ी रहती हैं। mallius, incus, और stapes यह भी वाइब्रेट होने लगती हैं।

बिल्कुल हिलने से लगती हैं, देखिए हमारे कान के मिडल इयर से ही एक और ट्यूब नीचे की ओर निकली रहती है, जिसे eustachian tube कहते हैं। यह हमारे नाक के जुड़ी रहती है। जब भी हम सांस लेते हैं तो नाक एक छोटा सा छेद रहता है, जो eustachian tube के थ्रू हमारे कान से जुड़ा रहता है। और जब भी हम सांस लेते हैं तो एयर eustachian tube के थ्रू मिडल इयर में भी आकर, यहां पर eardrum पर अंदर की ओर से प्रेशर लगाती है।

मतलब हमारे eardrum पर बाहर से और अंदर से दोनों ही तरफ से, pressure लगता रहता है, तभी यह वाइब्रेट करता है। और हम साउंड को प्रोसेस कर पाते हैं।

अब देखें जैसे ही मिडल इयर मैं पाया जाने वाला stapes हड्डी हमारे inner ear से आकर जुड़ा रहता है, हमारा inner ear भी दो भागों में बांटा रहता है, एक होता है cochlea और इसके पीछे इससे जुड़ा हुआ vestibular system, जो कि हमारे शरीर को बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है। यह बहुत और बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट पार्ट है, इस वेस्टिब्यूलर सिस्टम इसके बारे में, मैं आपको अलग से वीडियो बना कर बताऊंगा…

देखे हमारा जो cochlea होता है, यह बिल्कुल snail की तरह संरचना वाला होता है, जिसमें कुछ फ्लूइड भरा रहता है। देखिए जब ear ड्रम की वजह से, यह तीनों हड्डियां वाइब्रेट करने लगती हैं, तब यह हड्डियां अपने वाइब्रेशन को cochlea में transmit करने लगती हैं। मतलब इसके वाइब्रेशन से यह cochlea भी वाइब्रेट करने लगता है।

और यह cochlea भी अंदर 3 भाग में विभाजित रहता है। जब हम इस snail जैसे संरचना को अनरोल करके देखेंगे, तब हम इसको ढंग से समझ पाएंगे कि किन भागों में बटा रहता है।

Unroll करने पर हम पाते हैं कि हमारा यह cochlea  तीन भागों में बांटा रहता है, इसके ऊपर वाला भाग पर scala vestibuli नाम का duct होता है, जो कि आगे की ओर से मुड़कर नीचे एक दूसरे duct से जुड़ जाता है, जिसे स्टेला tympani कहते हैं।

देखिए इन दोनों ही duct में एक फ्लूइड भरा रहता है, जोकि नॉन कंप्रेसिबल fluid होता है, और इन्हीं दोनों duct के बीच में एक पतला सा मेंब्रेन होता है, जिसे बेसलर मेंब्रेन कहते हैं, और इसी baslar मेंब्रेन से जुड़ा रहता है, हमारे कान का सबसे इंपॉर्टेंट भाग, organ of corti जो कि हमारे साउंड wave को डिटेक्ट करके हमारे brain तक ले जाता है।

जब हम अपने cochlea को बीच से काट कर देखेंगे, तो उसके अंदर की संरचना, scala tympani, scala vestibuli यह सब कुछ इस तरह से दिखेगा….

देखिए जब इन तीनों हड्डियों की वजह से वाइब्रेशन कॉकलिया में पहुंचता है, तो कॉकलिया में मौजूद नॉन कंप्रेसिबल fluid वाइब्रेट करने लगता है, और इसी वाइब्रेशन की वजह से ही ये basalar membrane भी वाइब्रेट करने लगता है, और इसके ऊपर मौजूद organ of corti में कुछ हेयर सेल होते हैं, इन hair cell के ऊपर बहुत ही छोटे छोटे stereocilia नाम की संरचना होती है।

और body of corti में यह हेयर भी दो प्रकार के होते हैं, आउटर हेयर cell और inner हेयर cell. Inner सेल ही वह सेल होता है, जो साउंड को प्रोसेस करके हमें कोई चीज सुनाता है. और यह outer हेयर cell हमारे ऑडियो को एम्प्लीफाई करता है, और उसे brain stem में पहुंचाने के लिए transduce करता है.

देखिए जब हमारा cochlea वाइब्रेट करने लगता है. तब हमारे cochlea में मौजूद बॉडी ऑफ corti पर मौजूद हेयर cell भी वाइब्रेट करने लगते हैं। इन हेयर सेल के ऊपर मैंने बताया कि बहुत ही छोटे छोटे संरचनाएं होती हैं। होता यह है कि इस body of corti के ऊपर भी एक tectorial membrain होता है।

जब hair वाइब्रेट करने लगते हैं, तो इसके ऊपर मौजूद छोटे-छोटे यह जो stereocillia होते हैं, वह tectorial membrain से टकराने लगते हैं। और इन्हीं के टकराने की वजह से साउंड सुनने योग्य बनता है। इनके टकराने से ions का एक्सचेंज होता है। और जो साउंड प्रोड्यूस होता है। वह इसी बॉडी ऑफ corti से जुड़े वेस्टिब्यूलोकोकलियर nerve से होते हुए हमारे ब्रेन में चला जाता है।

वेस्टिब्यूलोकोकलियर nerve वही होता है जो हमें सुनने के लिए मदद करता है, 8th cranial nerve.

देखिये आपने यह तो सुना ही होगा कि हम मनुष्य 20hz से 20000hz तक की आवाजों को सुन सकते हैं। जब हम अपने cochlea को एक्सपेंड करके देखेंगे, तो जो हमारा basalar मेंब्रेन है, हम पाते हैं कि वह आगे की ओर बहुत ही चौड़ा हो जाता है, और पीछे की ओर बहुत ही सकरा सा रहता है।

होता यह है कि पीछे की ओर वाला भाग हमें high-frequency का साउंड सुनवाने में मदद करता है, जैसे इस तरह…… और बीच वाला भाग हमें मीडियम फ्रीक्वेंसी क्या आवाज सुनवाने मदद करता है इस तरह…. और आगे वाला सबसे चौड़ा वाला भाग, हमें low frequency की आवाज सुन वाने में मदद करता है इस तरह…

देखिये ब्रेन में जैसे यह nerve प्रवेश करता है, सबसे पहले यह हमारे brainstem में पहुंचता है,
ब्रेन स्टेम से एक nerve आती है, इसी brainstem के पीछे ही मौजूद इनफीरियर colliculi से, फिर यहां से यह tract पहुंच जाते हैं। thalamus में और थैलेमस क्या करता है, इन सारे साउंड वेव के सिग्नल को हमारे ऑडिटरी कॉर्टेक्स में भेज देता है, जो कि हमारे ऑडियो को प्रोसेस करके हमें चीजों को बहुत ही क्लियर कोई चीज सुनाता है।

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