खतरनाक एलर्जी जिसमें शरीर खुद को नुकसान पहुंचाती हैं hypersenstivity 2

देखिये इम्यून सिस्टम का काम है कि वह हमारे शरीर की रक्षा करें, किसी भी बाहरी pathogen से बैक्टीरिया या वायरस से… लेकिन जब यही इम्यून सिस्टम हमारे शरीर के अपने ही सेल को अकारण ही मारना शुरू कर दें, तो इसे  हाइपरसेंसटिविटी कहते हैं। जिसमें 4 टाइप के हाइपरसेंसटिविटी होती है। हाइपरसेंसटिविटी टाइप वन जिसे एलर्जी के नाम से जनरली हम जानते हैं, इसके बारे में पिछले video में हम जान चुके हैं।

आज इस वीडियो में हम हाइपरसेंसटिविटी टाइप टू के बारे में जानेंगे, लेकिन सबसे पहले हमें यह जानना चाहिए कि कोई भी immune cell हमारे शरीर के ही अपनी सेल्स को मारना शुरू क्यों कर देती है। लेकिन जब हमारे इम्यून सेल्स b cell और t cell का डेवलपमेंट हो रहा होता है, तो कुछ b cell और t cell ऐसे होते हैं जो सही से mature नहीं हो पाते हैं। वह अपने ही शरीर के सेल को मारने लगते हैं, इन्हें इन सेल के मैचुरेशन साइट थायमस और bone marrow में ही खत्म कर दिया जाता है।

जिससे शरीर हमेशा स्वस्थ बना रहे, लेकिन कुछ b cell सेल और t cell इस प्रोसेस से escape जाते हैं। और फिर हमारे शरीर में हाइपरसेंसटिविटी को जन्म देते हैं। यानी वह मरते नहीं है बल्कि जीवित ही रहते हैं, और शरीर में बीमारियां पैदा कर सकते हैं।

देखिए b cell का काम क्या होता है, यह b सेल दरअसल एक वाई आकार में एंटीबॉडी नाम के प्रोटीन को रिलीज करते हैं। जो क्या करता है किसी भी वायरस या बैक्टीरिया के सरफेस पर जो एंटीजन होता है, उससे bind हो जाता है, जिसे कोई भी वायरस है बैक्टीरिया सेल में एंटर न कर सके। जैसे ही यह एंटीबॉडी किसी बैक्टीरिया या वायरस पर bind होता है, तुरंत ही ऐसे कंप्लीमेंट्री प्रोटीन, मैक्रोफेज और न्यूट्रोफिल एक्टिव जाता है। जो इन बैक्टीरिया वायरस को मारना शुरू कर देते हैं।

लेकिन इस हाइपरसेंसटिविटी टाइप टू में जो कि एक प्रकार का ऑटोइम्यून डिजीज होता है। उसमें क्या होता है कि यही एंटीबॉडी हमारे नॉर्मल सेल पर जाकर अटैच हो जाते हैं, और उन पर कंप्लीमेंट्री प्रोटीन और मैक्रोफेज और neutrophils जैसे cell काम करना शुरू कर देते हैं, और उन्हें डिस्ट्रॉय कर देते हैं।

और यह एंटीबॉडी हमारे नॉर्मल cell पर दो तरीके से form हो सकते हैं। अगर कोई कारण से antigen शरीर में इंटरनली ही बन रहा हो, या कोई एक्सटर्नल substance लेने से शरीर में ऐसे antigen आ जा रहे हैं, जो इन एंटीबॉडी से जाकर bind हो जा रहा है।

मान लीजिए कि हमें किसी एक्सटर्नली सब्सटेंस किसी दवा जैसे पेनिसिलिन से एलर्जी है, अगर हमने इसे खाया तो यह पेनिसिलिन के कुछ particle जुड़ जाते हैं हमारे रेड ब्लड सेल से और इसके surface पर antigen बना लेते हैं। क्या होता है यह जो immature b सेल होते हैं, यह Igm और IgG नाम के एंटीबॉडीज को रिलीज करना शुरू कर देते हैं। और जो पेनिसिलिन का कड़ हमारा रेड ब्लड सेल से जुड़ गया था उससे जाकर bind हो जाते हैं।

जैसे ही रेड ब्लड सेल पर एंटीजन एंटीबॉडी कंपलेक्स बना कर देता है, ये कई सारे कंप्लीमेंट्री प्रोटीन को की इस रेड ब्लड सेल पर मैक फॉरमेशन कर देते है। यानी मेंब्रेन अटैक कंपलेक्स जिससे रेड ब्लड सेल के सरफेस पर छेद बन जाए और इस सेल के सारे material बाहर निकल जाए।

या फिर इस एंटीजन एंटीबॉडी कॉन्प्लेक्स को डिटेक्ट कभी न्यूट्रोफिल्स ऐसे सब्सटेंसस release करना शुरू कर दें, जिससे inflammation होने लगे और यह सेल मर जाए या फिर मैक्रोफेज इन्हें डिटेक्ट करके इन्हें phagocyte कर दे, मतलब इन्हें इन्हें खाना शुरू कर दे। इन सब कंडीशन में हो ये रहा है कि जो हेल्दी सेल हमारे अपने शरीर के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है, उसे हमारा अपना इम्यून सिस्टम खुद ही kill करना शुरू कर दे रहा है। जिसे ऑटोइम्यून डिजीज के नाम से हम लोग जानते हैं। इस प्रकार के हाइपरसेंसटिविटी को दरअसल साइटोटाक्सीसिटी के नाम से जाना जाता है। जिसका मतलब यह होता है कुछ ऐसे शब्द substances जो हमारे सेल के लिए ही टॉक्सिक हो जाते हैं।

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