दवाई का पाचन कैसे होता है

आप जब बीमार पड़ते हो आप दवा खाते हो। आप कभी यह सोचे हो कि जब आप दवा खाते हो, तो वह हमारे शरीर में पचता कैसे हैं?? देखिए दवा शरीर में कैसे काम करता है?? अगर आपको यह जानना है तो आपको यह 4 term हमेशा याद रखना है। क्योंकि दवा शरीर में इन्ही 4 चरणों से होकर गुजरती है, और अपना काम करती है। पहला स्टेज है absorbtion, दूसरा है distribution तीसरा है metabolism और चौथा है excretion.

चलिये सबसे पहले जानते हैं, जो दवा हम खा रहे हैं, उसका हमारे GIT tract में अब्जॉर्प्शन कैसे होता है?? देखिए जैसे ही हम अपने स्टमक में मेडिसिन को लेंगे, सबसे पहले ये मेडिसिन stomach juices के contact में आता है। अगर स्टमक में इस मेडिसिन को जगह मिलेगी, मतलब stomach में food ना हो तो यह मेडिसिन तुरंत ही डिसइंटीग्रेट होकर स्टमक के juice में ही dissolve हो जाएगी, यानी पूरी तरीके से घुल जाएगी।

अब देखिए अगर दवाई का नेचर एसिडिक हो तो दवा स्टमक में ही ब्लड में absorb हो जाएगी। और अगर दवा का नेचर बेसिक होगा तो यह दवा जो dissintegrate होकर dissolve हुई है, वह स्मॉल इंटेस्टाइन में जाएगी और हमारे स्मॉल इंटेस्टाइन से ब्लड में absorb हो जाएगी। but अधिकतम दवाइयां स्मॉल इंटेस्टाइन में absorb होते हैं।

Absorb होने के बाद यह दवाएं अब डिस्ट्रीब्यूशन के stage में आती हैं, जहां पर आपको बता दें कि उनका डिस्ट्रीब्यूशन टोटली ब्लड फ्लो पर निर्भर करता है। अगर आपको यह लगता है कि हमारे शरीर में ब्लड का फ्लो शरीर के हर एक अंगों में समान होता है, तो आप थोड़ा गलत है, शरीर में लीवर ब्रेन और किडनी में ब्लड flow कंपेरटिवली ज्यादा होता है। इसलिए इन ऑर्गन की तरफ जो दवा हम खाए रहते हैं, जो absorb हुआ रहता है। वहां पर इन drugs का डिस्ट्रीब्यूशन ज्यादा होता है। पर इसमें भी थोड़ा सा complecations है, जो दवा हम खाए रहते हैं।

अगर वह फ्री form में रहे, तो आसानी से ऑर्गन पर चली जाती हैं, पर अगर वही दवा प्लाजमा प्रोटीन के साथ bind हो जाता है, जो कि ब्लड में पाया जाता है, तो यह मैक्रोमोलीक्यूल बन जाता है। और साइज में इतना बड़ा हो जाता है कि यह ऑर्गन में डिफ्यूज हो ही नहीं पाता है। और तब तक ब्लड में सर्कुलेट होता रहता है, जब तक प्रोटीन के साथ unbind होकर यह दोबारा से free फॉर्म में नहीं आ जाता। उदाहरण के लिए acidic nature वाली दवाएं ब्लड plasma के albumin साथ bind होती हैं। और बेसिक nature वाली दवाएं अल्फा एसिड ग्लाइकोप्रोटीन के साथ bind होगी।

सबसे ज्यादा दवाइयों का डिस्ट्रीब्यूशन होता है हमारे लिवर में और जब liver में यह दवाई आती हैं तो इनका मेटाबॉलिज्म होता है. जो की दवाइयों के वर्किंग का तीसरा स्टेज है, हमारे शरीर में… देखिये जो मेन काम है लिवर का दवाई के मेटाबॉलिज्म में, वह है अगर कोई दवा lipid सॉल्युबल है तो उससे वॉटर सॉल्युबल बना दिया जाए, जिससे आसानी से दवा यूरिन के थ्रू हमारे शरीर से एक्सक्रीट हो सके। और इतना ही नहीं लीवर दवाई के साथ बहुत सारा काम करता है।

दरअसल अगर कोई दवा इनएक्टिव फॉर्म में है तो वह लीवर में जाकर एक्टिव होकर हमारे शरीर भर में फैलती है। अगर कोई दवा एक्टिव फॉर्म में है, तो वही लीवर क्या करेगा उसे इनएक्टिव फॉर्म में कन्वर्ट कर देता है। और मैक्सिमम portion दवा का शरीर में काम नहीं कर सकत है, ऐसा भी लीवर करता है। दरअसल लिवर में पहुंचने पर दवा के साथ बहुत सारी क्रियाएं होती हैं।

और जब यह मेटाबॉलिज्म की क्रियाएं हो जाती हैं तो जो फाइनल प्रोडक्ट बनता है, लीवर में उसे मेटाबॉलिट्स कहते हैं। आपको जानकार आश्चर्य हुआ कि जितनी भी दवा हम खाते हैं, उसमें से अधिकतम portion लिवर metabolism करके उसे निष्क्रिय कर देता है। इसलिए डॉक्टर हमें जितनी दवा की जरूरत होती है, उससे ज्यादा अमाउंट लिखता है। जिससे लीवर के मेटाबॉलिज्म के बाद भी दवा हमारे ब्लड में cerculate होकर जहां जरूरी है, वहां जाकर अपना काम कर सके।

इसके बाद दवा के पाचन में आता है चौथा स्टेज जो है excretion का, एक certain टाइम लिमिट के बाद लगभग 5 6 घंटे के बाद अलग-अलग दवाइयों के अनुसार दवाएं किडनी से फिल्टर होकर हमारे शरीर से एक्सक्रीट हो जाती हैं. हालांकि हर दवाई का half life अलग-अलग होता है.

कुछ दवाइयां ब्लड में अब absorb होने के बाद अपनी peak पर लगभग 4 से 5 घंटे में पहुंच जाती हैं और उसके कुछ देर बाद किडनी से फिल्टर होकर एक्सक्रीट हो जाती हैं यूरिन के थ्रू… बट कुछ दवाइयां जो प्रोटीन के साथ bind हो जाती हैं, फ्री मेडिसिन के मॉलिक्यूल के एस्क्रीट होने के बाद यह दोबारा से प्रोटीन के साथ unbind होकर ब्लड में रिलीज हो जाते है। इसलिए कुछ दवाइयां ज्यादा देर तक चल सकते हैं।

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