पानी इस दुनिया का सबसे सिंपल मॉलिक्यूल है, जो इस दुनिया में लाइफ के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, जब शरीर मे पानी आता है, तभी शरीर में कई सारी केमिकल reaction होता हैं और यही केमिकल क्रियाएं हमारे शरीर में एनर्जी को लाते हैं। आपको एक वीडियो में मैंने यह बताया है कि भोजन कैसे पचता है, उसमें बहुत ही डिटेल से मैंने यह आपको बताया है कि छोटी आंत और बड़ी आंत में कैसे nutrients का absorbtion होता है।
लेकिन आज आपको इस वीडियो में, मैं यह बताऊंगा कि हमारे शरीर में पानी का absorbption होता है, ध्यान रहे पानी का पाचन तो होता नहीं क्योंकि पानी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने के लिए एसिड की आवश्यकता होती नहीं है। इसीलिए तो वीडियो को शुरू में ही मैंने आपको यह बताया की वाटर इस दुनिया का सबसे सिंपल मॉलिक्यूल है।
उदाहरण के लिए जब हम कोई प्रोटीन या कोई fat वाली चीज खाते हैं, तो पहले स्टमक में कुछ एसिड रिलीज होते हैं जो इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर simpler फॉर्म में तोड़ देते हैं। तब जा जाकर छोटी आंत और बड़ी आंत इन फूड को पचा पाता है। लेकिन पानी के साथ ऐसा नहीं है, पानी तो बहुत सिंपल है, उसे बस पेट में जाना है और पेट की बाकी क्रियाएं उन्हें कुछ ही मिनटों में absorb कर लेती है।
देखिए जैसे ही हम पानी पीते हैं, पानी हमारे esophagus से होते हुए हमारे स्टमक में जाता है। अब देखिए यहां से पानी के अब्जॉर्प्शन का प्रोसेस शुरू होता है। देखिए अब अगर आपके स्टमक में पहले से ही भोजन पड़ा रहेगा, तो यह पानी स्टमक से छोटी आत में पास होने में 45 मिनट तक का समय ले सकता है। लेकिन अगर आपका पेट खाली रहा, आपके पेट में कोई भी भोजन नहीं है तो यह पानी छोटी आत में 5 मिनट के अंदर ही पास हो जाएगा।
अब 5 मिनट तक यह जो पानी स्टमक के अंदर रहता है, तो स्टमक के दीवार पर जो लाइनिंग होती है, वह बहुत ही स्मॉल अमाउंट में, बहुत थोड़ा सा वाटर अब्जॉर्ब कर लेती है। अब जाहिर सी बात है जब पानी स्टमक में आएगा तो इसमें थोड़ा बहुत एसिड भी होगा, वाटर इस के साथ मिक्स होकर इसे nutrilise कर देता है।
अब जैसे ही यह पानी छोटी आत में पहुंचता है, वहां पर यही पानी हमा हमारे ब्लड में अब्जॉर्ब होना शुरू हो जाता है। होता यह है कि जैसे ही पानी छोटी आत में आता है, वैसे ही छोटी आत के सरफेस पर लगे villies अब्जॉर्प्शन के प्रोसेस को शुरू करते हैं। देखिए इन villies के ऊपर कुछ प्रोटीन चैनल से होते हैं, यह प्रोटीन चैनल वाटर को absorb करने के लिए, अपने अंदर से छोटी आत के lumen के अंदर ढेर सारा सोडियम आयन भेजने लगते हैं।
जिससे lumen में सोडियम का concentration ज्यादा हो जाए और villies के अंदर सोडियम कंसंट्रेशन कम हो जाए। देखिए आप ये बात जानते हैं कि किसी भी चीज का फ्लो ज्यादा density वाले चीज से कम डेंसिटी वाले जिसकी तरफ ही होता है। तो होता यह है कि अब यह सोडियम आयन जोकि lumen में ज्यादा density में हो गए हैं, वह अब ग्लूकोस के साथ एक symporter की सहायता से वाटर को भी villies के अंदर पहुंचाने लगते हैं।
सिंपोर्टर वह प्रोटीन चैनल होते हैं जहां से 2 डिफरेंट टाइप के मॉलिक्यूल एक साथ ही एक ही दिशा में जा सकते हैं
यानी हमारे ब्लड स्ट्रीम में पहुंचाने लगते हैं और इस तरह से पानी हमारे खून में मिल जाता है। और खून के जरिए यानी ब्लड स्ट्रीम के जरिए वह पूरे शरीर भर में फैल जाता है। पर पानी का अब्जॉर्प्शन स्मॉल इंटेस्टाइन में भी बहुत थोड़ा ही होता है। अस्सल वाटर का अब्जॉर्प्शन शुरू होता है लार्ज इंटेस्टाइन यानी बड़ी आत में।
लेकिन ऐसा क्यों है कि लार्ज इंटेस्टाइन में ही वॉटर का असली absorbtion क्यों होता है। देखिए लार्ज इंटेस्टाइन का सरफेस एरिया बहुत ज्यादा होता है और यह छोटी आत की तुलना में ज्यादा सीधा path फॉलो करता है। बिल्कुल सीधे-सीधे होता है इसमें lumen, इसीलिए वाटर और salt यानी इलेक्ट्रोलाइट्स का अब्जॉर्प्शन सबसे ज्यादा बड़ी आत में ही होता है।
अब देखिए पानी जैसे ही इस बड़ी आत में आएगा सोडियम कंसंट्रेशन यहां लुमेल में ज्यादा हो जाएगा और सेल के अंदर यहां पर सोडियम कंसंट्रेशन कम हो जाएगा। जैसे ही सोडियम के डेंसिटी में डिफरेंस आया वाटर के मॉलिक्यूल ग्लूकोस के साथ मिलकर एक सिंपोर्टर के थ्रू हमारे बॉडी में absorb हो जाएंगे।
अब देखिए लार्ज इंटेस्टाइन में जब भी पानी या किसी फूड का मूवमेंट होता है, तो वह 1 mass मूवमेंट होता है, जो कि दिन में तीन से चार बार होता है। जैसा कि मैंने आपको बताया है की वाटर का असली अब्जॉर्प्शन बड़ी आत में ही होता है। अगर बड़ी आत में यही वाटर का अब्जॉर्प्शन ढंग से ना हो और पानी बड़ी आत में ही ठहरा रह जाए, तो व्यक्ति को लूज मोशन यानी डायरिया हो जाता है। वह बात कि पेट में गुड गुड सा हो रहा है, वह ढंग से शरीर में वाटर के ऑब्जेक्शन के ना हो पाने के कारण ही होता है इसके लिए व्यक्ति को अपने शरीर में इलेक्ट्रोलाइट आयन को बैलेंस करना पड़ता है।
और वही जब पानी का अब्जॉर्प्शन बड़ी आत में बहुत ज्यादा हो जाता है, तब हमारे पेट में जो वेस्ट मटेरियल होता है वह बहुत ज्यादा टाइट हो जाता है। और इसी कारण से ही हमें कब्ज़ यानी कॉन्स्टिपेशन की शिकायत होने लगती है।