देखिये अगर आपको किसी चीज की जानकारी ना हो ना, तो दुनिया आपको उस विषय में इतनी बुरी तरीके से उल्लू बना देगी और आपको बातों में इस तरह से उलझा देगी कि आप उनकी बातों में यकीन कर जाओगे और सामने वाला आपको कब ठग कर निकल जाएगा, आपको पता भी नहीं चलेगा। इसी तरह जो चीजें दुनिया में बहुत ज्यादा बोली जाती हैं, जो इस समय बहुत ज्यादा ट्रेंडिंग चीज है, कम से कम उस चीज के बारे में तो आपको पूरी की पूरी जानकारी, वह भी सही सही होनी चाहिए। और बहुत ही कम शब्दों में आपको जानकारी मिल जाए ज्यादा सोचना ना पड़ेगा दिमाग में लगाना पड़े यही सबसे जरूरी चीज है।
जैसे एक शब्द है वेंटिलेटर हॉस्पिटल से संबंधित है, आखिर यह चीज क्या है जो मेडिकल के क्षेत्र में आजकल के समय में सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट बताया जा रहा है, जिसे लाइफ सपोर्टिंग डिवाइस भी कहते हैं। अगर यह हमारे पास हो, मतलब इस pandemic में अगर इस की शॉर्टेज ना हो, तो होगा क्या?? यह करता क्या है ?? इसके होने से हमें फायदा क्या है ? चलिए आज आपको इसके बारे में बताएंगे बहुत ही साधारण शब्दों में ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
देखिए हमारा फेफड़ा हमें सांस लेने में मदद करता है, हम नाक से सांस लेते हैं, यह एयर जो कि हम नाक से लेते हैं, वह विंड पाइप से होते हुए दो भागों में बट जाता है, जो कि फेफड़ा होता है। इन फेफड़ों के अंदर एक छोटी छोटी बैग लाइक स्ट्रक्चर होते हैं जिन्हें alveoli कहते हैं। यहीं से ऑक्सीजन ब्लड में पास होता है और पुराना कार्बन डाइऑक्साइड alveoli से आकर नाक के द्वारा बाहर निकल जाता है।
लेकिन कुछ कंडीशन ऐसी होती है जब व्यक्ति का फेफड़ा ढंग से काम नहीं कर पाता है, जैसे निमोनिया, कुछ खास प्रकार की फेफड़ों की बीमारियां, जैसे चीजों में उसे सांस लेने के लिए मेकैनिकली मशीनों की आवश्यकता होती है और उसी मैकेनिकल मशीन को, जो व्यक्ति को सांस लेने में मदद कर सकता है उसी को कहते हैं वेंटिलेटर। अब देखिए ये कैसा होता है और यह काम कैसे करता है।
देखिए सबसे पहले तो जिस भी पेशेंट को वेंटिलेटर पर लाना होता है, उसे पहले कुछ खास प्रकार के ड्रग देकर उसे बेहोश कर दिया जाता है। फिर इस प्रक्रिया में एक L टाइप की टूल होती है, जिसे laryngoscope कहते हैं। इसमें आगे की ओर एक सपोर्टिव ब्लड होता है और इसमें एक टॉर्च लगी होती है। इस laryngoscope टूल को मुंह में डालकर डॉक्टर बहुत ही ज्यादा सावधानी से हमारे गले में मौजूद एपिग्लोटिस को उठा देता है।
एपिग्लोटिस खाना खाते वक्त विंड पाइप को ढक लेता है जिसके कारण से भोजन कभी भी हमारे फेफड़ों में नहीं जाता है। उस एपिग्लोटिस को उठाने के बाद डॉक्टर पेशेंट के विंड पाइप में Ek endotracheal ट्यूब को इंसर्ट करता है और फिर इस endotracheal ट्यूब के एंड में जो कि विंड पाइप से अंदर होता है, उसमें एक बलून जैसी संरचना को फुला दिया जाता है। जिससे यह पाइप अपनी जगह पर स्थिर बनी रहे। इसके लिए डॉक्टर एक स्पेशल बैग जैसे संरचना से पंप करके डॉक्टर ट्यूब की पोजीशन को चेक भी करता है कि वह ट्रेकिया के बिल्कुल लोअर पार्ट में हो।
इसके लिए डॉक्टर एक्स-रे भी करके देख सकता है।
एक बार यह सारा प्रोसेस पूरा हो जाए उसके बाद डॉक्टर इस endotracheal ट्यूब में एक मैकेनिकल वेंटीलेटर को जोड़ देता है, एक स्पेशली डिजाइन मैकेनिकल पंप जो मनुष्य के फेफड़ों को ऑक्सीजन प्रोवाइड कराने में मदद करता है और शरीर के अंदर से कार्बन डाइऑक्साइड को निकालने में मदद भी करता है। ये व्यक्ति को सांस लेने में मदद करता हैं। इस प्रकार से एक व्यक्ति तब तक वेंटिलेटर पर रहता है जब तक वह खुद से सांस लेने में सक्षम ना हो जाए। कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन की मात्रा को निरंतर चेक किया जाता रहता है।