कोविड-19 एक virus था, जो क्या करता था कि हमारे सेल के अंदर इंटर करके हमारे cell के अंदर जो नॉर्मल प्रोसेस होती हैं, उसको हाईजैक करके वायरली प्रोटीन को encoded करना शुरू कर देती था और इसी के जरिए वह रिप्लिकेट भी होता जाता था।
देखिये होता क्या है कि कोई भी वायरस जब किसी सेल के कांटेक्ट में आता है, तो पहले वह सेल के ऊपर जो प्रोटीन होते हैं उसके साथ bind होकर ही सीधे हमारे सेल के अंदर पहुंच जाते हैं। यह सेल के अंदर घुसते सबसे पहले burst होकर अपने डीएनए को सीधे सेल के न्यूक्लियस पर भेज देते हैं।
जहां पर यह अपने ही वायरस के डीएनए को बहुत ज्यादा संख्या में प्रोड्यूस करवाने लगते हैं। यानी न्यूक्लियस के अंदर बहुत सारे वायरस वाले डीएनए का ट्रांसलेशन होने लगता है। न्यूक्लियस से बाहर निकलने पर इन्हीं डीएनए के ऊपर एक layer चढ़ जाती है। जिनके ऊपर प्रोटीन के स्पाइक्स होते हैं और कई सारे वायरस फॉर्म हो जाते हैं। और हमारे cell के न्यूक्लियस की वजह से बहुत सारे वायरस हमारे शरीर भर में फैल जाते हैं।
लेकिन देखिए होता यह है कि जब भी हमारे cell के अंदर वायरस इंटर करता है, तो हमारा जो cell है ना वह भी एक प्रकार के cytokines को रिलीज करने लगता है। मतलब हमारे सेल के अंदर से ही एक ऐसा प्रोटीन निकलने लगता है, जो बगल के cell को यह सिग्नल दिन लगता है कि इस सेल के अंदर अब एक वायरस घुस चुका है। जो अंदर cell के प्रोसेस को हाईजैक करके सेल को डैमेज पहुंचा रहा है। ये जो cytokines नाम का प्रोटीन निकल रहा है सेल से, सिग्नल देने के लिए दूसरे cell को इसे इंटरफेरॉन कहते हैं। याद रखिएगा वायरस इन्फेक्शन में इंटरफेरॉन शब्द बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट होता है।
यह इंटरफेरॉन दूसरे सेल को सिग्नल देता है कि अपने अंदर आने वाले वायरस के nucleic मटेरियल को ट्रांसलेट ना होने दें। और साथ ही साथ ये cell की ग्रोथ को कम भी कर देता है। और वाइट ब्लड सेल्स को दूसरे तरीके से सिग्नल देता है, जिससे और भी ज्यादा इंफेक्शन के चांसेस बढ़ जाता है इसीलिए इंटरफेरॉन हमारे हेल्थ के लिए infection के समय खतरनाक भी होता है।
अब देखिए होता है क्या है कि इसी इंटरफेरॉन को ट्रैक करते-करते वायरस वाले साइट पर डेंड्रिटिक सेल और मैक्रोफेज भी आ जाते हैं। जो इन्हें किल करना तो शुरू करते हैं पर इन्हें मारना इतना आसान नहीं होता है। इसीलिए यह इस virus के कुछ पार्ट को लेकर lymph node में जाते हैं जहां पर इसे detect करने के बाद एडाप्टिम्यून सिस्टम एक्टिवेट हो जाता हैं। और अब b सेल प्लाज्मा सेल में कन्वर्ट होकर एंटीबॉडी रिलीज करना शुरू कर देता है। जिसके कारण से एंटीबॉडी पुरे वायरस के सर पर opsonise हो जाते हैं।
मतलब एंटीबॉडी पूरे के पूरे वायरस को घेर लेते हैं, उनके surface के साथ bind हो जाते हैं और हमारे इम्यूनिटी सेल को यह सिंगल देते हैं कि इन virus को फगोसाइट करके इन्हें किल करना शुरू करो। यह देखते ही macrophage फिर दोबारा से इन वायरस के ऊपर अटैक करता है। क्योंकि एंटीबॉडी इनके ऊपर opsonise हो चुका है। इसलिए यह वायरस अब सेल के अंदर enter कर पाते हैं, और मैक्रोफेज इन्हें फगोसाइट करना शुरू कर देता है और देखते ही देखते पूरे शरीर से पूरी तरीके से वायरस को खत्म कर देता है।