आपके स्किन में कहीं पर कांटा चुभा, आप तुरंत ही बिना सोचे समझे रिएक्ट करते हो, आप गलती से किसी जलते हुए चीज को छू लेते हो, आग वगैरह को या जलते हुए बर्तन कोतो आप तुरंत ही पीछे हटते हो जलने पर तुरंत पानी से अपना हाथ धोने लगते हो ताकि घाव जल्दी से जल्दी हील हो। क्या आपने यह सोचा है कि आखिर कांटा चुभने से या चोट लगने से या फिर किसी भी जलते हुए चीज को छू लेने से हमारे स्किन में ऐसा होता क्या है कि हम तुरंत ही इन सब चीज से बचने के लिए react करने लगते है, बिना सोचे समझे…. और आखिर हमें दर्द होता ही क्यों है? अगर दर्द ना हो तो क्या हमारा काम नहीं चलेगा….
हमारे चमड़ी में एक है, मेकैनोरिसेप्टर्स जो हमारे nerve से जुड़कर सीधे हमारे ब्रेन तक जाता है, यह हमें टच की फीलिंग करवाता है। एक होता थर्मोरिसेप्टर्स ये भी nerve के थ्रू हमारे ब्रेन से जुड़ा रहता है। और हमें ठंडी गर्मी का एहसास कराता है। और एक होता है nociceptors जो की free nerve endings होते है, यह भी nerve fibers के through हमारे brain से जुड़ा रहता है। और यह हमें हमारे शरीर में दर्द का एहसास कराता है। यह nerve फाइबर केवल हमारे स्किन में नहीं पाए जाते बल्कि हमारे अंदरूनी organ जैसे लिवर वगैरह के वॉल पर भी पाए जाते हैं। हमारे जॉइंट पर भी, यह nerve ending पाई जाती है। और हमारे शरीर में दर्द का एहसास हमें पांच चरणों में महसूस होता है।
पहला चरण जिसमें हमारे स्किन में हमें कहीं चोट लग जाती है, किसी प्रकार का कांटा चुभ जाए, हम जल जाए तो हमारे आसपास की tissue damage होकर ऐसे केमिकल रिलीज करना शुरू कर देते हैं। जो इन nociceptors जो skin में मौजूद है उन्हें स्टिम्युलेट कर देगा और जैसे ही ये stimulate यह दर्द का पहला चरण जिसे कहते हैं ट्रांसडक्शन उसे चालू कर देते हैं। जिसमें नर एंडिंग nociceptors इलेक्ट्रिक सिग्नल को nerve fiber फाइबर के थ्रू ब्रेन तक भेजना शुरू कर देता है।
अब आपको बता दें कि जो nerve फाइबर इस nerve ending के थ्रू जुड़कर हमारे बिन तक पहुंच रहे हैं। ये हमारे शरीर में दो प्रकार के होते हैं। एक होता माईलिनेटेड nerve फाइबर जिसे ए डेल्टा फाइबर भी कहते हैं। जो कि हम इस फास्ट पेन या sharp pain का महसूस कराता है। जो भी हमें बहुत तेजी से दर्द होता है। और दूसरा होता है नॉन माईलिनेटेड nerve फाइबर, जो हमें स्लो pain का अनुभव कराता है। इसे सी टाइप फाइबर भी कहते हैं।
उसके बाद देखिए पहले चरण के बाद दूसरे चरण में इन्हीं नर फाइबर के थ्रू सिग्नल सीधे हमारे स्पाइनल कॉर्ड में पीछे की ओर से प्रवेश करता है। मतलब spinal chord के डोर्सल रीजन से, यह सिग्नल स्पाइनल कॉर्ड में पहुंचता है। इस phase को कंडक्शन का phase कहते हैं।
उसके बाद दर्द का तीसरा चरण आता है, जिसमें क्या होता है जो nerve हमारे स्पाइनल कॉर्ड पर आ रही थी, वह अब न्यूरोट्रांसमीटर रिलीज करके अब यह सिग्नल स्पाइनल कॉर्ड तक भेजते है। जिससे सिग्नल स्पाइनल कॉर्ड से पास होते हुए पीछे की ओर से सीधे हमारे ब्रेन में जाता हैं। इसे हमारे दर्द का ट्रांसमिशन का चरण कहते हैं।
अब जैसे ही यह सिग्नल हमारे ब्रेन में पहुंचा, दर्द का चौथा चरण जिसे कहते हैं, perception वह घटित होता है। जिसमें ब्रेन के हायर सेंटर में सिग्नल प्रोसेस होकर हमें दर्द का अनुभव करवाते हैं, उस पार्टिकुलर जगह पर।
उसके बाद पांचवें चरण में जैसे ही ब्रेन को यह पता चल गया कि इस जगह पर कुछ ऐसा स्टीमुलस है, जो हमें दर्द की फीलिंग करा रहा है, ब्रेन उस पार्टिकुलर जगह पर कुछ ऐसे न्यूरोट्रांसमीटर को रिलीज करवाता है, जैसे एंडोर्फिंस वगैरह को जिससे वहां पर दर्द का अनुभव हमें थोड़ा कम महसूस हो। दर्द के इस चरण को माड्यूलेशन का चरण कहते हैं। यह pain का आखरी चरण है। यानी पांचवा चरण।
और कुछ इस प्रकार से हमें दर्द महसूस होता है। ब्रेन को जैसे ही इस बात का पता चला कि ये पार्टिकुलर टिशु डैमेज हो रही है। तुरंत ही ब्रेन मोटर इंपल्सेस भेज कर हमें बहुत तेजी से reat करवाता है। ताकि हम तुरंत ही अपनी रक्षा कर सकें।