बक्सर का युद्ध (Buxar ka Yudh) भारत देश के दो आक्रांताओं के बीच 18वीं सदी में लड़ा गया भीषण युद्ध था। यह युद्ध मुख्यतया भारत पर राज करने के उद्देश्य से आई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की अंग्रेज सेना व भारत पर सदियों से राज कर रहे मुगल आक्रांताओं की सयुंक्त सेना के बीच (Buxar war in Hindi) लड़ा गया था।
बक्सर के युद्ध का ही परिणाम था कि भारत की शीर्ष मुगल आक्रांताओं की सेना को अंग्रेजों की शक्ति व रणनीति का एहसास हो गया था और अंग्रेजों का भारत के एक बहुत बड़े भूभाग पर अधिकार (Baksar ka Yudh) स्थापित हो गया था। यदि आप भी बक्सर युद्ध के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आज हम आपके साथ मुगलों व अंग्रेजों के बीच लड़े गए बक्सर के युद्ध का संपूर्ण इतिहास शेयर करेंगे।
बक्सर का युद्ध (Buxar ka Yudh)
मुगल आक्रांता जहाँगीर के नेतृत्व के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में धीरे-धीरे पैर ज़माने शुरू किये थे। शुरुआत में तो उनका उद्देश्य व्यापार करना व राजाओं को भारी रकम देकर खुश करना होता था लेकिन जैसे-जैसे उनका विस्तार होता गया वैसे-वैसे भारत देश पर राज करने की उनकी महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ती चली गयी।
बंगाल का मीर कासिम व अंग्रेज़ (Mir qasim battle of buxar)
उस समय भारत के बंगाल प्रांत (पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश तथा अन्य कुछ भूभाग) पर मुगल आक्रांता मीर कासिम का शासन था और उसे वहां नवाब की भूमिका प्राप्त थी। अंग्रेजों की बंगाल में दखलंदाजी बहुत बढ़ गयी थी और इसी कारण मीर कासिम की सेना और अंग्रेज सेना के बीच झडपे आम बात हो गयी थी।
दरअसल बक्सर का युद्ध कहने को तो 22 अक्टूबर 1764 को लड़ा गया था लेकिन मीर कासिम और अंग्रेजों के बीच लड़ाई 1763 में ही शुरू हो गयी थी। फिर एक दिन अंग्रेजों के भय से मीर कासिम बंगाल से भागकर अवध चला गया था।
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बक्सर युद्ध का कारण (Buxar yudh ke karan)
बक्सर का युद्ध होने के कई कारण थे। पहला तो यह कि भारत जैसे समृद्ध देश जो ना केवल सोने, हीरे, आभूषण से धनी था बल्कि अन्न, मसालों व अन्य बहुमूल्य से भरा हुआ था। ऐसे देश पर अंग्रेजों की नज़र शुरू से ही थी और वे किसी ना किसी तरह से इस पर मुगल सत्ता को बेदखल कर खुद अधिकार करना चाहते थे।
दूसरा, उस समय तक अंग्रेज़ भारत पर धीरे-धीरे अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ाते जा रहे थे, खासकर भारत के पूर्वी प्रांतों बंगाल इत्यादि पर। यहीं बात वहां के नवाब मीर कासिम को बहुत खटक रही थी और उसने अंग्रेजों के व्यापार पर कई तरह के प्रतिबन्ध व अतिरिक्त कर लगा दिए थे। यह बात अंग्रेजों को बहुत ही नागवार गुजरी और उन्होंने मीर कासिम को सत्ता से बेदखल करने का मन बना लिया था।

अवध के नवाब शुजा-उद-दौला व मीर कासिम का संगठन
उस समय अवध पर मुगल आक्रांता शुजा-उद-दौला का शासन था और मीर कासिम उसी की शरण में गया था। उन दोनों ने अंग्रेज सेना से मिलकर लड़ने का निर्णय लिया लेकिन यह नाकाफी था। फिर इसके लिए भारत की शीर्ष मुगल सत्ता दिल्ली से संपर्क साधा गया जहाँ पर मुगल आक्रांता शाह आलम द्वितीय शासन कर रहा था।
चूँकि अंग्रेज सेना के द्वारा अपने राज्य को बढ़ाये जाने और मुगल सेना को खदेड़ने की खबरे रह-रहकर शाह आलम के पास पहुँचती रहती थी तो दिल्ली के दरबारी भी डरे हुए थे। उन्हें अपनी सत्ता के छिन जाने का डर सता रहा था। जब शुजा-उद-दौला व मीर कासिम ने उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में साथ देने को कहा तो शाह आलम भी जल्दी ही मान गया।
बक्सर की लड़ाई (Buxar ki ladai)
बंगाल नवाब मीर कासिम, अवध नवाब शुजा-उद-दौला व दिल्ली का शहंशाह शाह आलम द्वितीय के बीच संधि हो गयी और तीनों की सेना बिहार के बलिया से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बक्सर नामक मैदान पर आ खड़ी हुई। दूसरी ओर, अंग्रेज सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो कर रहा था। यह दिन 22 अक्टूबर 1764 का दिन था जिस दिन एक तरह से भारत की संपूर्ण मुगल सत्ता व अंग्रेजों के बीच प्रभुत्व स्थापित करने का संघर्ष था।
चूँकि अंग्रेजों ने रणनीति के तहत काम किया और उन्होंने नवाब शुजा-उद-दौला की सेना में कई उच्च अधिकारियों को धन के लालच में अपनी ओर कर लिया। इससे मुगल सेना में फूट पड़ गयी। इसके बाद दोनों सेनाओं के बीच एक भीषण संग्राम छिड गया और कुछ ही घंटों में अंग्रेजों ने मुगल सेना को धूल चटा दी।
बक्सर युद्ध का परिणाम (Buxar yudh ke parinam)
यह युद्ध शुरू होने के कुछ ही घंटों में समाप्त हो गया क्योंकि एक ओर जिहादी सेना थी तो दूसरी ओर रणनीति के तहत चलने वाली कूटनीतिज्ञ सेना। अंग्रेजों ने मुगल सेना को हराने के लिए कई रणनीतियों का सहारा लिया और जिसका परिणाम यह रहा कि भारत की शीर्ष सत्ता व अवध नरेश की सेना को साथ में लेकर भी मीर कासिम जीत ना सका।
युद्ध में अन्तंतः मुगलों की हार हुई और इसका संदेश दिल्ली में हर व्यक्ति तक पहुंचा। दिल्ली की सत्ता तक इससे हिल गयी और उन्हें समझ आ गया कि अब वह दिन दूर नही जब भारत पर अंग्रेजों का आधिपत्य होगा। अंग्रेजों ने भारत के पूर्वी भाग पर पूर्णतया अधिकार कर लिया और वहां पर अपने कठपुतली नवाब बैठा दिए।
उन कठपुतली नवाबों को अंग्रेज सरकार हर वर्ष वेतन दिया करती थी और शासन अंग्रेजों का ही चलता था। यह वेतन भत्ता भी हर नवाब के बाद कम होता चला गया और अन्तंतः 1776 में अंग्रेजों ने नवाबों को ही पूर्णतया ख़त्म कर दिया और आधिकारिक तौर पर अपना राज्यपाल (गवर्नर) नियुक्त कर दिया जो वहां की सत्ता का शीर्ष अधिकारी हुआ करता था।