पृथ्वी की रक्षा अंतरिक्ष मे कौन करता हैं

देखिए जब भी किसी चीज को ऐसा बनाना होता है कि वह सरवाइव कर सके, चाहे वह कुछ भी चीज हो तो, सबसे पहले तो उस चीज को प्रोटेक्ट करने के लिए एक डिफेंस सिस्टम बनाना पड़ता है. एक ऐसा सिस्टम जो उसे हर तरीके के समस्या से बचाए रखें. जैसे भारत ही देख लो भारत एक growing इकोनामी है, भारत बहुत तेजी से विकास भी कर रहा है। लेकिन यह सब तभी संभव है जब भारत को किसी भी प्रकार के संकट से बचाने के लिए उसका डिफेंस सिस्टम हमेशा उसकी रक्षा करते रहे, तो आप समझ सकते हैं कि डिफेंस का कितना ज्यादा महत्व है।

आपके शरीर के साथ भी तो ऐसा ही होता है आपका इम्यून सिस्टम आपको बाहर के pathogen से बचाने का काम करता है। अगर यह ना हो तो वायरस और बैक्टीरिया आपको पूरी तरीके से छलनी कर देंगे। लेकिन जब बात आती है हमारे अपने ग्रह पृथ्वी की, तो हम यह बात कभी नहीं समझना चाहते कि हमारी रक्षा कौन कर रहा है, आखिर वह कौन है जो हमें हर प्रकार के संकट से बचाता रहता है, जिसके कारण से आज हमारा यह ग्रह सरवाइव कर पा रहा है।

आपको सारी बात बताते है, लेकिन इस सौरमंडल में हमारे पृथ्वी का एक बहुत बड़ा बॉडीगार्ड है, एक ऐसा डिफेंस सिस्टम जो बहुत ज्यादा विकराल है। वह विकराल बॉडीगार्ड है हमारा जुपिटर यानी बृहस्पति ग्रह, जो हर क्षण पृथ्वी की रक्षा करता है, किसी भी प्रकार के एस्ट्रॉयड और कॉमेंट जैसी चीजों से। अगर यह हम से टकरा गए ना तो जैसे आज से 6.5 करोड़ साल पहले डायनासोर जो कि इस पृथ्वी के सबसे बड़े रूलर थे, जो बहुत ज्यादा सालों तक पृथ्वी पर राज किए थे, उनका अंत हो गया था। ठीक वैसे ही हमारा भी अंत हो जाएगा।

पृथ्वी के नीचे क्या है – पृथ्वी की जानकारी

और हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे, थैंक्स टू जुपिटर… तुरंत ही आप जुपिटर के लिए एक लाइक कर दो और मुझे नीचे कमेंट करके बताओ कि जुपिटर का रेडियस कितना है। पर फिलहाल आप यह तो जान गए कि जुपिटर हमारी पृथ्वी का सबसे बड़ा बॉडीगार्ड है, वह हमारे पृथ्वी की रक्षा करता है लेकिन कैसे ??? कैसे यह हमारे पृथ्वी पर जीवन के लिए सबसे जरूरी चीजों में से एक हैं, चलिए जानते हैं…

देखिए जुपिटर पूरी तरीके से गैस से बना हुआ है, इसमें थोड़ा सा भी ठोस चट्टान का रूप नहीं है। पर आपको बता दें कि जुपिटर पूरी तरीके से गैस है तो बना हुआ है, लेकिन इसमें गैस इतनी ज्यादा dense है कि इसमें अगर हम कोई भी पत्थर या  लोहा भी फेंक दे, तो भी यह गैस के मॉलिक्यूल पूरी तरीके से इन पत्थर या मेटल्स को भी तोड़ के रख देंगे, इतना ज्यादा डेंस हैं जुपिटर के गैस मॉलिक्यूल।

देखें जब हमारे सोलर सिस्टम का निर्माण हो रहा था ना, तब शुरुआत में बहुत बड़े गैस के गोले एक ही जगह ग्रेविटेशनल फोर्स की वजह से collapse हो कर, सूर्य का निर्माण किया, उसके बाद गैस जायंट यानी जो बड़े-बड़े गैस planet है उनका निर्माण हुआ था। उनमें से सबसे पहले जुपिटर का ही निर्माण हुआ था।

जब जुपिटर का निर्माण हुआ तो उसमें 90% हाइड्रोजन था और 10 पर्सेंट हिलियम था और आज भी इसमें ऐसा ही composition है। बस समस्याएं ये रह गई कि अगर जुपिटर का mass थोड़ा सा और ज्यादा बड़ा हो गया होता, मास में, लगभग 80 गुना ज्यादा तो यह एक तारा होता। ऐसा होने पर इसके अंदर न्यूक्लियर फ्यूजन की क्रिया स्टार्ट हो गई होती और यह एनर्जी रिलीज करना शुरू कर दिया होता, सूर्य की तरह, और पृथ्वी पर जीवन भी नही होता।

लेकिन अभी जुपिटर एक तारा नहीं है, उसे सौर मंडल का एक ग्रह ही कहा जाता है, देखिए जुपिटर इतना बड़ा है कि इसमें लगभग 1300 पृथ्वी समा सकती हैं और यह मास में पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा बड़ा है। अब जब कोई ग्रह मास में इतना ज्यादा होगा, तो उसका गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी बहुत ज्यादा होगी। जैसा आप जानते हैं gravity मतलब चीजों को अपनी ओर आकर्षित करने की शक्ति।

अब देखिए आपने सौर मंडल के थोड़े से स्ट्रक्चर को देख लीजिए, देखिए हमारे सौरमंडल में सूर्य से क्रम में, सबसे पहले आता है बुध, फिर आता है शुक्र, फिर आती हैं हमारी पृथ्वी, पृथ्वी के बाद मंगल, फिर asteroid बेल्ट, फिर आता है हमारा बड़े-बड़े गैस gaint ग्रह, जैसे बृहस्पति उसके बाद यूरेनस, उसके बाद नेपच्यून, प्लूटो और उसके बाद से ही शुरू हो जाता है kuiper belt.

जहां पर बड़े-बड़े चट्टान सूरज के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं, एक ऐसी मिस्टीरियस जगह जो सूरज से सबसे ज्यादा दूर है और जिसके बारे में अभी हम बहुत कम जानते हैं। इंटरेस्टिंग बात ये हैं कि कभी-कभी इस kuiper बेल्ट से कुछ comet, कुछ asteroid रास्ता भटक कर सोलर सिस्टम के ग्रहों की तरफ बढ़ने लगते हैं।

होता यह है कि जैसे यह चट्टान ग्रहों की तरफ बढ़ता है, ये ग्रहों से टकरा जाते हैं और वहां बहुत भारी तबाही लाते हैं। जैसे आज से 6.5 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर asteroid के टकराने की वजह से ही डायनासोर का खेल खत्म हो गया था. लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि जब यह ठोस चट्टान वाले ग्रहों की तरफ बढ़ता है, जैसे हमारी पृथ्वी, या मंगल ग्रह हो गया शुक्र हो गया.

तो उससे पहले इन चट्टानों को गैस जायंट ग्रहों से होकर गुजरना पड़ता है, जब यह बृहस्पति के पास आते हैं यानी जुपिटर के पास से,  तो चुकी जुपिटर का गुरुत्वाकर्षण शक्ति बहुत ज्यादा है, इसके कारण से यह बड़े-बड़े चट्टान, जो कि अंतरिक्ष से भटक कर सोलर सिस्टम में आ जाते हैं, वह जुपिटर के ग्रेविटेशनल फोर्स के कारण जुपिटर में ही जाकर समा जाते हैं और हमारे पृथ्वी की तरफ टकरा नहीं पाते हैं। अगर ऐसा हो गया कि कभी है जुपिटर के दायरे से ना आते हुए सीधे पृथ्वी की तरफ बढ़ जाए, तो यह पृथ्वी पर तबाही ला देंगे, हो सकता है कि हम मनुष्यों का नाश कर दे, जैसे डायनासोर का हो गया था।

तो जब भी किसी एस्टेरोइड या कॉमेट को, इन बड़े-बड़े चट्टानों को पृथ्वी पर आक्रमण करना हो तो पहले उन्हें जुपिटर से सामना करना पड़ेगा, ये हैं ना बिल्कुल पृथ्वी का बॉडीगार्ड।

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