हल्दीघाटी का युद्ध – haldighati ka yudh in hindi

हल्दीघाटी का युद्ध (Haldighati ka Yudh) भारत के वीर योद्धा महाराणा प्रताप व क्रूर मुगल आक्रांता अकबर की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में जयचंद की भूमिका निभाने वाला अपने ही देश का राजा मानसिंह था जो आमेर का राजा था। हल्दीघाटी का युद्ध हमेशा से ही विवाद का विषय रहा हैं क्योंकि दशकों से हमारी सरकारों के द्वारा इतिहास को तोड़-मरोड़ कर विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन किया (Haldighati war in Hindi) गया जबकि अपने ही देश के वीर योद्धाओं को अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से अपमानित किया गया।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण हल्दीघाटी का युद्ध (Haldighati ka Yuddh) रहा क्योंकि इसमें इतिहासकारों और सरकारों ने अकबर की सेना को विजयी घोषित कर महाराणा प्रताप का घोर अपमान किया। किंतु अब वर्तमान भारत सरकार ने सही इतिहास हम सभी के सामने रखने के लिए खोजबीन शुरू की हैं। ऐसे में यदि आप भी हल्दीघाटी युद्ध के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आज हम आपके साथ वही साँझा करेंगे।

हल्दीघाटी का युद्ध (Haldighati ka Yudh)

यह युद्ध आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व 18 जून 1576 ईसवीं को महाराणा प्रताप की सेना व मानसिंह के नेतृत्व में अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था। कहते हैं कि उस समय अकबर की सेना की संख्या के सामने महाराणा प्रताप की सेना बहुत कम थी लेकिन फिर भी प्रताप की सेना ने अकबर की सेना को छठी का दूध याद दिला दिया था।

हल्दीघाटी के युद्ध में राजपूतों ने अपने व मुगलों के रक्त से हल्दीघाटी की पीली मिट्टी को लाल कर दिया था। अपनी मिट्टी के सम्मान के लिए रक्त बहा देने वाले इस भीषण युद्ध के कारण ही महाराणा प्रताप इतिहास के पन्नों पर सदा के लिए अमर हो गए थे।

हल्दीघाटी का इतिहास (Haldighati yudh history in Hindi)

हल्दीघाटी का इतिहास (Haldighati yudh history in Hindi)

दरअसल हल्दीघाटी अरावली पर्वत श्रंखलाओं के बीच एक दर्रा हैं जहाँ यह युद्ध लड़ा गया था। यहाँ की मिट्टी का रंग हल्दी के सामान पीला हैं, इसलिए इसे हल्दीघाटी नाम दिया गया था। अपने पिता आक्रांता हुमायूँ की सीढियों से गिरकर मृत्यु के बाद अकबर को भारत का राजा घोषित किया गया था। अकबर की महत्वाकांक्षाएं बहुत बढ़ गयी थी और उसने संपूर्ण भारत पर कब्ज़ा करने के लिए खून की नदियाँ बहनी शुरू कर दी थी।

बक्सर का युद्ध – Buxar war in Hindi

अकबर को राजस्थान के राजाओं की वीरता से बहुत अधिक क्रोध आता था और इसी कारण उसने अपनी सेना को राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने के लिए भेजी। अकबर के भय से कई राजाओं ने आत्म-समर्पण कर दिया तो कई राजा मृत्यु को प्राप्त हो गए। उस समय चित्तोड़ की गद्दी पर महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह विराजमान थे।

उन्होंने अकबर की सेना के सामने आत्म-समर्पण करने से मना कर दिया था। इसके बाद अकबर की सेना ने चित्तोड़ को चारों ओर से घेरकर आक्रमण कर दिया था। इस स्थिति में उदयसिंह को चित्तोड़ छोड़कर जंगल में छिपना पड़ा और चित्तोड़ एक तरह से अकबर के अधीन हो गया।

हल्दीघाटी महाराणा प्रताप का युद्ध (Haldighati Maharana Pratap ki ladai)

4 वर्षों तक जंगलों में रहने के बाद उदयसिंह की मृत्यु हो गयी और महाराणा प्रताप को राजा घोषित किया गया। बचपन से ही अपनी मातृभूमि के लिए जीवन बलिदान कर देने की ललक रखने वाले महाराणा प्रताप को अकबर व मुगल सेना की अधीनता बिक्कुल भी स्वीकार्य नही थी।

अकबर ने मेवाड़ के ज्यादातर जगहों पर कब्ज़ा करने के लिए आमेर के राजा मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना को महाराणा प्रताप से लड़ने भेजा। महाराणा प्रताप भी अपनी सेना के साथ तैयार थे और मुगल सेना को चित्तोड़ पहुँचने से पहले ही रोक देना चाहते थे।

मानसिंह के नेतृत्व में अकबर की सेना का सामना हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप की सेना से हुआ। इतिहासकारों के अनुसार उस समय मुगल सेना में 50 हज़ार से ज्यादा सैनिक थे तो महाराणा प्रताप की सेना में 20 हज़ार से कम। हालाँकि कुछ अन्य इतिहासकारों ने अपनी गणना के अनुसार लिखा हैं कि मुगल सेना के सामने राजपूत सेना नगण्य थी।

महाराणा प्रताप आमने राजाओं की भांति हाथी पर युद्ध नही लड़ते थे और ना ही पीछे रहकर युद्ध का संचालन करते थे बल्कि वे अपने सैनिकों की भांति घोड़े पर सवार होकर युद्ध करने में विश्वास करते थे। तो इस युद्ध में भी वही हुआ। महाराणा प्रताप अपने प्रसिद्ध घोड़े चेतक पर युद्ध के लिए सबसे आगे निकल पड़े और मुगल सेना पर बुरी तरह टूट पड़े।

उनके एक हाथ में 100 किलो से ऊपर की तलवार थी तो दूसरे हाथ में इतना ही भारी भाला था। महाराणा प्रताप की ऊंचाई 7 फीट से भी ज्यादा थी और वे तलवार के एक ही वार से दुश्मन को घोड़े समेत दो हिस्सों में काट दिया करते थे।

इस युद्ध में दोनों ओर से बहुत ज्यादा जान माल की हानि हुई और संख्या में कम होने के बाद भी राजपूत सेना ने मुगल सेना को बहुत ज्यादा क्षति पहुंचाई। इतिहासकारों ने लिखा हैं कि हल्दीघाटी की पीली मिट्टी राजपूत व मुगल सेना के रक्त से लाल हो गयी थी।

हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम (Haldighati war winner in Hindi)

हालाँकि हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में हमे आजतक स्कूल, कॉलेज इत्यादि में जो पढ़ाया गया वह यह था कि अकबर की मुगल सेना विजयी रही जबकि महाराणा प्रताप हार गए थे और जंगलों में चले गए थे। वर्तमान भारत सरकार के आदेश पर पुरातात्विक विभाग के द्वारा ऐसे शिलालेखों को भी हटा दिया गया हैं जिसमे अकबर को विजयी घोषित किया गया था और साथ ही स्कूल की पुस्तकों से भी इन विवादस्पद पंक्तियों को हटा दिया गया हैं।

कई इतिहासकारों ने यह लिखा हैं कि इस युद्ध में किसी की भी विजय नही हुई थी क्योंकि महाराणा प्रताप की सेना कभी पीछे हटी नही और संघर्ष छोड़ा नही और अकबर की सेना भी डटी रही। इस युद्ध के बाद भी महाराणा प्रताप ने युद्ध करना नही छोड़ा और अकबर की सेना पर छापेमार युद्ध की रणनीति अपनाई।

तो अंत में, अभी तक के निष्कर्षों के आधार पर यही परिणाम निकलता हैं कि इस युद्ध में किसी की भी जीत नही हुई थी और महाराणा प्रताप सदा ही अविजयी रहे थे।

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