रक्त हमारे पूरे शरीर में ऑक्सीजन को पहुंचाता है। हर एक टिशू, हर एक ऑर्गन तक, हर 1 cell तक। यही आंतों से न्यूट्रिएंट्स को absorb करके पूरे शरीर भर में पहुंचाता है, और यह पूरे शरीर को एक साथ जोड़े रखता है। रक्त का हमारे शरीर में बहुत सारा फंक्शन है, इसीलिए इसके बहुत सारे फंक्शन की ना बात करते हुए, प्रयास करते हैं यह जानने का कि आखिर हमारे शरीर में रक्त का निर्माण होता कैसे है?
देखिए इस लाल रंग जैसे दिखने वाला रक्त, चार मुख्य तत्वों से मिलकर बना हुआ होता है, एक होता है हमारे ब्लड में रेड ब्लड सेल्स, जिसे erythrocyte कहते हैं। वाइट ब्लड सेल्स जिसे ल्यूकोसाइट कहते हैं और प्लेटलेट्स जिससे थ्रांबोसाइट कहते हैं। और यह तीनों डब्ल्यूबीसी आरबीसी और प्लेटलेट्स जिस लिक्विड के अंदर सस्पेंडेड रहते हैं, उसे कहते हैं हमारे ब्लड का प्लाज्मा। जिसके अंदर बहुत सारा प्रोटीन होता है।
एक-एक करके सब के बारे में जानेंगे, लेकिन सबसे पहले आपको यह बताते चलें कि जब आप कभी किसी ब्लड सैंपल को एक ट्यूब में रखकर centrifugation प्रोसेस से होकर गुजारेंगे तो, हमारे ब्लड का आरबीसी ट्यूब में नीचे की ओर बैठ जाता है, इसके बीच वाले पार्ट में डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स आकर इकट्ठा हो जाते हैं, और सबसे ऊपर यह जो हल्के पीले रंग का लिक्विड हमें दिख रहा है, यही होता है हमारे ब्लड का प्लाज्मा जिसमें बहुत सारे प्रोटीन होते हैं।
चलिए आपको सबसे पहले यह बता देते हैं कि हमारे ब्लड में इस ब्लड प्लाजमा का निर्माण कैसे होता है। देखिए हमारे ब्लड प्लाज्मा में 90% वाटर होता है, यानी h2o और 10% में यह आयन गैसेस लिस्ट हारमोंस और सबसे जरूरी प्रोटीन होते हैं। जिसमें से 9% केवल प्रोटीन ही होता है और ब्लड प्लाज्मा में पाए जाने वाले प्रोटीन को तीन भागों में विभाजित कर दिया गया है।
एक होता है albumin जिसका निर्माण हमारे लिवर में होता है, और यह हमारे ब्लड में रिलीज होने वाले हार्मोन, enzyme और विटामिन जैसे चीजों को कैरी करने का काम करते हैं।
दूसरा होता है ग्लोब्युलिन, जिसका काम हमारे इम्यून सिस्टम में बहुत ज्यादा है, इम्यून सिस्टम में इन प्रोटीन का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। और इसका निर्माण भी लीवर में होता है।
और तीसरा होता है fibrinogen फाइब्रिनोजेन fibrin का निर्माण करता है, जब कहीं पर भी हमारी स्किन कट जाती है और वहां से खून बहने लगता है, तो यही फाइब्रिनोजेन वहां पर फाइब्रिनस छोड़कर प्लेटलेट के साथ जुड़कर यहां पर प्लेटलेट plug का निर्माण करता है. यह भी लिवर में ही बनता है।
देखिए बाकी के 3 cells जो कि ब्लड में पाए जाते हैं, रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स। इसके निर्माण के बारे में अगर हमें जानना है, तो हमें आना होगा अपने हड्डियों की तरफ, क्योंकि हमारे हड्डियों के अंदर जो बोन मैरो पाया जाता है। उसी से ही इन तीनों सेल्स का निर्माण होता है, खास तौर पर हमारे लोंग बोंस में पाई जाने वाली बोन मैरो।
देखिए हमारे यह जो लोंग बोंस होती हैं, जांघों की हड्डियां, हाथ पांव की हड्डियां, यह सब जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे इनमें बोन मैरो भी दो भाग में बंट जाता है। जब हम सब बच्चे रहते हैं तब तक तो हमारे हड्डियों के अंदर पाई जाने वाली बोन मैरो, रेड बोन मैरो होती है। लेकिन जैसे ही हम बड़े होते जाते हैं यह रेड बोन मैरो किनारे की ओर की खिसकती जाती है। और बीच में येलो बोन मैरो आ जाती है, जो कि mainly फैट को स्टोर करती है, और कार्टिलेज जैसे टिशू को बनाने में मदद करती है।
देखिये हमारे रेड बोन मैरो में एक मल्टिपोटेंट स्टेम सेल पाई जाती है, जिसे कहते हैं hematopaietic stem सेल या hemocytoblast, यह एक स्टेम सेल होती है जो खुद को रिप्लिकेट भी कर सकती है, साथ ही साथ दूसरे सेल में differentiate भी हो सकती है।
देखिए यह मल्टीपोटेंट हीमोसाइटोप्लास्ट 2 सेल में डिफरेंस होता है, एक होता है common myeloid प्रोजेनिटर सेल और दूसरा होता है common lymphoid प्रोजेनिटर सेल।
देखिये जो कॉमन myeloid प्रोजेनिटर सेल होता है, यही आपस में डिफरेंटशिएट होते होते रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स में बदल जाता है। लेकिन कैसे जब यह myeloid cell खुद को differentate कर देता है, proerythroblast में तब यह खुद को बदलते बदलते ही erythrocyte यानी रेड ब्लड सेल्स में बदलकर ब्लड में ही मिल जाता है, यानी ब्लडस्ट्रीम में ही जाकर मिल जाता है।
ठीक उसी तरह अगर यह myeloid प्रोजेनिटर सेल खुद को megakaryoblast में बदल लेता है, तो यह खुद को बदलते बदलते अंत में थ्रांबोसाइट यानी प्लेटलेट्स में बदल ले जाता है. और ब्लड स्ट्रीम में जाकर मिल जाता है.
आप यह जान चुके हैं कि रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स बनते कैसे हैं और कहां पर बनते हैं. अब चलिए जान लेते हैं कि व्हाइट ब्लड सेल्स कैसे बनते हैं, और असल में वाइट ब्लड सेल्स ब्लड में कितने फॉर्म में मौजूद रहते हैं.
देखिए जब यह common myeloid प्रोजेनिटर सेल खुद को differentiate करके माइलोब्लास्ट्स cell में बदल जाता है, तब यह खुद को वाइट ब्लड सेल्स के 4 रूपों में बदल पाने के लिए तैयार कर पाता है, देखिए कैस.
देखी जब यह माइलोब्लास्ट्स cell खुद को b-promyeloblast में बदलता है, तब यह खुद को basophil में बदल पाता है, जो कि वाइट ब्लड सेल्स का एक प्रकार है. Basophil का काम mainly शरीर में allergens को रिलीज करना है, जैसे हिस्टामिन कुछ अर्ली कैंसर सेल्स और पैरासाइट, fungi जैसे pathogens को डिस्ट्रॉय करना है.
देखिए फिर जब यही माइलोब्लास्ट सेल खुद को N-myeloblast में डिवेलप कर लेता है, तब यही सेल खुद को बदलते बदलते Neutrophil में बदल जाता है. जो कि एक वाइट ब्लड सेल का ही प्रकार है. यह किसी भी बाहरी pathogen को डिटेक्ट करके उन्हें या तो मार देता है या तो उन्हें डिसएबल कर देता है।
देखिए फिर यही myoblast जब खुद को E-promyeoblast में डिवेलप कर लेता है, यानी डिफरेंटशिएट कर लेता है, तब यह खुद को Eosinophils बदल लेता है, जोकि वाइट ब्लड सेल्स का तीसरा प्रकार है. यह infection वाले रीजन में inflammation पैदा करता है.
और वाइट ब्लड सेल का चौथा प्रकार मोनोसाइट तब बनता है, जब यही मयोब्लास्ट मोनोब्लास्ट में बदल जाता है. टिशु में पहुंचते ही यह मोनोसाइट मैक्रोफेज और डेंड्रिटिक cell में बदल जाता है.
मोनोसाइट अदर वाइट ब्लड सेल को हेल्प करता है, डैमेज और डेड सेल को खत्म करने में या किसी भी कैंसर सेल को हटाने में. वही जब यह मैक्रोफेज में बदल जाता है तो यह किसी भी बैक्टीरिया या वायरस को engulf करने का काम करता है, उन्हें डिस्ट्रॉय करने का काम करता है.
और डेंड्रिटिक सेल का काम बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट होता है, यह किसी बहुत ही खतरनाक वायरस या बैक्टीरिया से एंटीजन को डिटेक्ट करके उसी के अनुसार टी लिंफोसाइट और बी लिंफोसाइट्स का निर्माण करवाने में मदद करता है.
उसके बाद आ जाता हैं, हमारे रेडबोन पैरों में पाए जाने वाले हीमोसाइटोब्लास्ट के दूसरे प्रोजेनिटर्स सेल जिसे कहते हैं common lymphoid progenitor सेल, यह खुद को पहले बदलता है lymphoblast सेल में उसके बाद यह खुद को further डिवाइड करते-करते टी लिंफोसाइट और b लिंफोसाइट में कन्वर्ट कर लेता है। जो कि हमारे एडाप्टिव इम्यूनिटी सिस्टम के लिए बहुत ही ज्यादा इंपॉर्टेंट है, बहुत ही ज्यादा।
देखिए हमारे शरीर के लोंग बोन में पाए जाने वाले रेड बोन मैरो से बनने वाले इन ब्लड सेल्स के प्रोसेस को Hematopoiesis कहा जाता है। और यह सभी सेल जो इस प्रोसेस में बनते हैं, यह हमारे शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न ब्लड वेसल्स के थ्रू ब्लड में जाकर मिल जाते हैं और शरीर को जरूरत के अनुसार इन सेल के फॉरमेशन में रेगुलेशन भी होता है।