नाक कैसे सूँघता है – how does nose smell

हम अपने पांचों senses से जितना भी इंफॉर्मेशन लेते हैं, उसमें 3% इंफॉर्मेशन हम अपने नाक से ही लेते हैं, मतलब सुन कर लेते हैं, और हम सब जानते हैं कि हमारे नाक का काम सूंघने के अलावा सांस लेने के लिए भी होता है, और आपको बता दें कि हमारे चेहरे में जितने भी स्ट्रक्चर हैं, उसमें सबसे ज्यादा कठिन एनाटॉमी यानी सबसे कठिन संरचना वाला हमारा नाक ही है।

क्योंकि इसके बनावट में बहुत सारी हड्डियों का इंवॉल्वमेंट है, अब मैं आपको नाक की बनावट में जो जो हड्डियां involve है उसके बारे में बता कर आपको बोर तो नहीं करना चाहता। इसलिए मैं आपको बिना बोर किए यह बताऊंगा कि हमारा नाक काम कैसे करता है। मतलब नाक smell कैसे करता हैं और सांस कैसे ट्रेवल करके नाक के थ्रू हमारे फेफड़े में जाता है।

नाक की संरचना –

देखिए हमारा जो नाक है, जिसको हम बाहर से देखते हैं, वह बना होता है कार्टिलेज से, यह है अपर कार्टिलेज और यह जो हमारा नॉस्ट्रिल बनाता है यह है lower कार्टिलेज, और इन दोनों ही cartilage जिसके ऊपर हमारी nasal bone पाई जाती है। यहाँ पर आप देख सकते हैं कि हमारे नाक के बीच में हमारे नाक के अंदर दो छेद बनाने के लिए एक nasal septum होता है।

आप देख सकते हैं इसको इमेज में, यह भी कार्टिलेज से बना होता है, लेकिन इसके पीछे वाला भाग बोनी होता है, मतलब बोन से बना होता है, और अंदर जब हम अपने नाक के छेद से अंदर की ओर जाएंगे तो हम पाएंगे कि हमारा नाक… अंदर की ओर फैरिंक्स में खुल जाता है, जिसे choana कहते हैं।

और देखिए हमारा यह जो नाक है ना, अंदर की ओर यह बहुत ही complecated होता है, इसमें बहुत सारे हड्डियों का इंवॉल्वमेंट होता है, चलिए ज्यादा डिटेल में नहीं जानते हैं, नहीं तो आप को समझने में दिक्कत होने लगेगी…

नाक के अंदर होता है साइनस –

देखिए हमारे चेहरे के अंदर कुछ खोखली जगह होती है, जिनके अंदर हवा भरी रहती है, जिसे साइनस कहते हैं। आप अक्सर सुने ही होंगे कि व्यक्ति को बहुत ज्यादा नाक से पानी गिर रहा है, इसे साइनस हो गया है।

तो असल में वह हमारे चेहरे में पाए जाने वाले इन खाली जगह के बारे में बताते हैं, देखिये साइनस क्या होता है, साइनस एक खाली जगह होती है, जिसके अंदर एयर भरी रहती है, और इसका काम यह होता है कि हमारे चेहरे और स्कल बोन को light करने का काम करता है।

होता यह है कि इन साइनस के दीवार पर म्यूकस मेंब्रेन होता है, जो कि म्यूकस बनाते हैं, म्यूकस वही होता है, जो हमारे नाक से चिपचिपा सा पीले रंग का पदार्थ निकलता है, जो सूखने पर हार्ड मटेरियल हमारे नाक से निकलता है, वह म्यूकस ही होता है।

कान कैसे सुनता हैं

देखिये साइनस में भरा हुआ यह म्यूकस हमारे नाक के अंदर आ जाता है, और हमारा नाक हमेशा एक चिपचिपा पदार्थ से भरा रहता है, जिसके कारण से जो भी डस्ट, बैक्टीरिया या कोई भी गंदगी हमारे नाक में आती है, तो पहले वह इसी म्यूकस में आकर चिपक जाती है। और हमारे नाक के अंदर कुछ बाल होते हैं, जो कि वातावरण में मौजूद धूल कणों को अंदर जाने से रोकता है।

एक बार हम अपने नाक के अंदर जो nasal कैविटी पाई जाती है, उसे साइड व्यू में देख लेते हैं, देखिये यह जो पूरा एरिया दिख रहा है, यह है हमारे नाक के अंदर की जगह, और यह है हमारे nasal cavity की फर्श यानी हमारे मुंह का छत, जिसे कहते हैं palate यानी तालु।

श्वसन में रोल –

और यह देखिए यह वाला जो जगह है, यहां पर हमारी नाक जाकर हमारे गले में खुलती है, और यहीं से हमारा मुंह यानी ओरल कैविटी भी गले में जाकर खुलती है, होता यह है कि जब हम सांस लेते हैं तो एयर इसी रास्ते से होते हुए हमारे फेफड़े में चला जाता है।

और एक बार सांस हमारे फेफड़े में गई, वहां पर कई सारे ब्लड कैपिलरीज होते हैं, जो ऑक्सीजन को ब्लड में पहुंचा देते हैं, और कार्बन डाइऑक्साइड को दोबारा से फेफड़े में छोड़कर हमारे सांस के जरिए बाहर निकाल देते हैं। यह तो वह हमारे नाक का पहला फंक्शन, जो कि सबसे ज्यादा जरूरी है।

सूंघने में नाक का काम –

अब उसके बाद हमारे नाक का दूसरा सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट फंक्शन आता है, smelling का जो कि हमारे फाइव सेंसेज में से एक है। देखिए अपना नाक सूँघता कैसे है, हमारे नाक के अंदर जो नेजल कैविटी पाई जाती है, उसके सबसे ऊपरी वाले हिस्से में यहां जो नेजल कमेटी की छत है, वह दरअसल बनी होती है, एक बहुत ही स्पेशल किस्म की हड्डी से जिसे कहते हैं, एथमॉइड बोन…

यह हमारी जो खोपड़ी की हड्डी है, उसका फर्श बनाती है यानी उसका फ्लोर… देखिए ethmoid bone  में बहुत ही छोटे छोटे कई सारे छेद होते हैं, जिनमें से हमारे दिमाग से निकलने वाली पहली क्रेनियल नर्व्स olfactory nerves से कुछ nerves फाइबर बाहर निकलते हैं, और हमारे नाक में निकल जाते हैं।

आंख कैसे देखती हैं

देखिए जब भी हम किसी ऐसे वस्तु के पास जाते हैं जिसको हम स्मेल चाहते हैं, तो दरअसल उस वस्तु से हवा के अंदर कुछ और odorent मॉलिक्यूल छोडे जाते हैं। odorent molecule वही होता है, जिसके वजह से हम किसी चीज को smell पाते हैं, लेकिन होता यह है कि यह जो odorent मॉलिक्यूल होते हैं, यह हवा के जरिए उड़कर हमारे नाक के अंदर आ जाते हैं। हवा के जरिए यह हमारी नाक के नसल कैविटी के अंदर, कैविटी की छत वहां पर पहुंचते हैं।

लेकिन हमारे नसल कैविटी के upper पार्ट से निकलने वाले जो nerve फाइबर होते हैं, उसके एंड पर olfactory cells पाए जाते हैं, देखिए जब भी किसी वस्तु से ododrent उड़कर हमारे नाक में आती है। वह इस olfactory cell से आकर bind हो जाती है।

मतलब इस olfactory cell पर मौजूद रिसेप्टर से bind हो जाती है, और जैसे ही किसी वस्तु से निकलने odorent इन cells से bind हुए olfactory सेल के अंदर आयन का मूवमेंट होने लगता है, यानी इंपल्सेस जनरेट होने लगते हैं, और इंपल्सेस जनरेट होकर हमारे ब्रेन के अंदर ऑल फैक्ट्री nerve से होते हुए हमारे हिप्पोकेंपस और amygdala से होते हुए हमारे टेंपोरल लोब में पहुंच जाता है, टेंपोरल लोब में ही हमारे smell के लिए olfactory cortex होता है।

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