rashtravad kya hai – अपने अक्सर न्यूज़ में राजनीतिक कारणों से यह सुना होगा राष्ट्रवाद के बारे में. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर यह राष्ट्रवाद होता क्या है? इस समय भारत में राष्ट्रवाद के नाम पर बहुत ज्यादा राजनीति हो रही है.
और इससे सही कहना या गलत कहना तो व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता हैै कि वह इसे किस तरीके से लेता है. वैसे राष्ट्रवाद एक बहुत ही जरूरी चीज भी है.
यह वो राष्ट्रवादी लोग ही है जो लोगोंं को अपने राष्ट्र की सुरक्षा करने और अपनेे देश को दूसरे देश की तुलना में ज्यादा विकसित करना जैैसे कंपटीशन करते है. तो चलिए बिना समय गवाएं पहले हमें यह जानना चाहिए कि आखिरी राष्ट्रवाद होता क्या है…
राष्ट्रवाद क्या हैं –
राष्ट्रवाद एक तरह की भावना है जो व्यक्ति को अपने देश से बहुत ज्यादा लगाव की भावना को प्रेरित करता है. यह एक तरह का समूह होता है जिसमें व्यक्ति अपने देश के इतिहास परंपरा भाषा जाति संस्कृति खाद्य आदि सब पर आस्था रखने को प्रेरित करता है.
और जब कोई समुदाय इस प्रकार की भावना रखता है तो इसी आधार पर अपने देश को स्थापित करने का, अपने राष्ट्र को इसी तरह बनाने का सपना भी दिखता है और ऐसा प्रयास भी करता है.
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हालाँकि दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो कुछ नेशनलिस्ट कहते हैं, तो कोई खुद को उदारवादी देश की श्रेणी में रखते हैं. लेकिन जब आप विश्व के मानचित्र को देखते हो तो दुनिया का ऐसा कोई भी देश नहीं है, कोई भी ऐसे लोग नहीं है जो खुद को एक देश के सीमा से परे मनाता हो.
जो खुद को nationalist नहीं मानता हो. दुनिया में हर एक भाग पर हर एक समुदाय के लोग एक न एक देश बना कर बैठे हैं. इसी भावनाओं को राष्ट्रवाद कहा जाता है.
राष्ट्रवाद का जन्म –
वैसे तो राष्ट्रवाद का जन्म पृथ्वी पर बहुत पहले से माना जा रहा है. आज से 1000 साल पहले भी राष्ट्रवाद पर कई सारे पंक्तियां और कविताएं लिखी जा चुकी हैं. ऐसा इतिहास में देखा गया है.
पर प्रामाणिकता के आधार पर राष्ट्रवाद का उदय माना जाता है फ्रांसीसी क्रांति से. जब 1789 में फ्रांस के राजा के अत्याचारों को देखते हुए और सामंत वादियों को ही सुविधाएं देने वाली नीतियों के कारण है फ्रांस के संविधान में परिवर्तन लाया गया.
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जिसके बाद से फ्रांस में लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास शुरू हो गया और वहीं से राष्ट्रवाद की भावना फैलने लगी. तो इस तरीके की भावना की शुरुआत में यूरोप से ही जन्मी।
यूरोप में सामंतवाद का अंत –
दरअसल जैसी स्थिति आज हमें यूरोप के देशों की देखने को मिलती है. वैसे आज से 200 साल पहले नहीं हुआ करता था. यूरोप के अलग-अलग देशों में अलग-अलग राजवंश पास करता था. जो केवल और केवल सामंतवादियों और अमीरों को ही अपने साथ मिलाकर गरीबों पर अत्याचार करने का काम किया करता था.
लेकिन यूरोप में पिछले 700 साल से चल रहे आंदोलन जिसमें पुनर्जागरण जैसे कई धर्म सुधार आंदोलन में शामिल है. उनका नतीजा यह रहा की असहाय और गरीबों मजदूरों ने अपने देश के राजवंश के खिलाफ मुहीम छेड़ दिया।
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जिसका फायदा वहां की जनता को मिला और उन्होंने देश के राजगद्दी से राजवंशों को उखाड़ फेंका और लोकतंत्र के सिस्टम को अपने देश में लागू कराया और यही से यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना को जन्म दिया गया.
जहां से यह राष्ट्रवाद पूरे विश्व भर में फैला और यह राष्ट्रवाद दुनिया भर में विश्वयुद्ध कराने में सफल भी रहा. हिटलर जैसे लोगों ने कट्टर राष्ट्र भावना के कारण से ही दुनिया भर में विध्वंस का तांडव मचाया था.
भारत में राष्ट्रवाद का उदय –
भारत में राष्ट्रवाद का उदय एक बहुत ही ज्यादा विवाद का विषय है. क्योंकि ब्रिटिश लोगों का कहना है कि जब ब्रिटेन के लोगों ने भारत में आकर भारत को एक किया और उनके अंदर राष्ट्रवाद की भावना को जन्म दिया तब से ही भारत में राष्ट्रवाद की भावना का जन्म हुआ है.
इससे पहले यहां के लोग राष्ट्रवाद की भावना को नहीं समझते थे. इससे पहले राष्ट्रवाद के मामले में भारत के हर एक राज्य कई छोटे-छोटे परगना में बटे हुए थे. यहां पर छोटे छोटे राजा राज करते थे.
ब्रिटेन के लोगों ने यहां आकर इन सभी राज्यों को एक करके एक बड़ा देश का निर्माण कराया इसके बाद ही भारत में राष्ट्रवाद की भावना को जन्म मिला। लेकिन आधुनिक इतिहासकार इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं है.
उनका कहना है कि भारत में राष्ट्रवाद की भावना आज से नहीं बल्कि हजारों साल पहले से ही हैं. इसके लिए उन्होंने अपने कुछ तर्क भी रखें आइये देखते है उन तर्कों को…
ऐसा माना जाता है कि भारत में राष्ट्रीय भावनाओं को चरम पर पहुंचाने का काम आज बहुत साल पहले वैदिक काल से ही शुरू हो गया था. जब अथर्ववेद में माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः श्लोक दिया गया था. जिसके अनुसार भूमि हमारी माता है और पृथ्वी का मैं पुत्र हूं.
जिसका कहने का मतलब यह रहा है कि जिस धरती पर हम रहे हैं उस धरती को हम माता समान मानते हैं और उसके प्रति कुछ भी करने को तैयार हैं और हम सब उसी धरती के पुत्र हैं.
श्री भागवत महापुराण में तो भारत भूमि को संपूर्ण पृथ्वी का सबसे पवित्र भूमि माना गया है. जहां पर जन्म लेना एक बहुत ही बड़ा पुण्य का काम है. इसी तरह अनेक पुराणों और शास्त्रों में भारत भूमि का वर्णन किया गया है.
भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद का जन्म –
आधुनिक समाज में भारत के राष्ट्रवाद का जन्म 1857 की क्रांति को माना जाता है. जब मंगल पांडे ने अंग्रेजों का विरोध करने के लिए स्वयं को फांसी पर चढ़ा दिया था. बताया जाता है कि जब भारत पर कई सारे आक्रमण हो रहे थे जैसे मुगलो और कई मुसलमान राजाओं का तो उस समय भारत बिल्कुल भी संगठित नहीं था.
भारत के राजाओं ने बिल्कुल भी मुस्लिम आक्रमणकारियों का विरोध नहीं किया क्योंकि उस समय भारत में राष्ट्रवाद बिल्कुल भी ना के बराबर था. लेकिन जब भारत में अंग्रेज आए और भारत के लोगों के प्रति अत्याचार करना शुरू किया।
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तब 1757 में प्लासी के युद्ध से धीरे-धीरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत का माहौल बनना शुरू हुआ. उस समय अंग्रेज भारत में कब्ज़ा करने का प्रयास भी कर रहे थे.
और अट्ठारह सौ सत्तावन आने तक तो भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठना शुरू हो गई और यहीं से भारत में राष्ट्रवाद का उदय भी होना शुरू हो गया.