रेपो रेट (Repo rate kya hai) को भारत के केंद्रीय बैंक व अन्य बैंकों के बीच का समझौता माना जाता हैं जो दिए गए ऋण पर लगने वाला ब्याज (Repo rate kise kahate hain) होता है। आमतौर पर भारतीय रिज़र्व बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था को ठीक रखने और महंगाई को काबू में रखने के लिए समय-समय पर रेपो रेट में बदलाव लाता रहता है। यह बदलाव सीधे तौर पर आम जनता को भी प्रभावित करता हैं।
यदि आप भी रेपो रेट को विस्तार से जानना चाहते हैं और यह कैसे काम करता हैं, इससे आप पर क्या प्रभाव पड़ता हैं, बैंक इससे क्या कर सकते (Repo rate ka matlab) हैं, इत्यादि प्रश्नों के उत्तर चाहते हैं तो आज हम आपको रेपो रेट के बारे में सबकुछ बताएँगे।
रेपो रेट क्या है (Repo rate kya hai)
रेपो रेट समझने से पहले आपको भारतीय बैंकिंग प्रणाली को समझना होगा। आपका किसी ना किसी बैंक में खाता होगा फिर चाहे वो सरकारी हो या निजी। कुछ सरकारी बैंक के उदाहरण हैं भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ़ बड़ोदा इत्यादि तो वही कुछ निजी बैंक के नाम हैं आईसीआईसीआई, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक इत्यादि।
अब यह सभी बैंक भारत सरकार के मुख्य बैंक अर्थात भारतीय रिज़र्व बैंक या रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि बैंकिंग प्रणाली को बनाने, बदलने, लोन की दर तय करने, पैसा इधर से उधर पहुँचाने, महंगाई काबू करने, इन्फ्लेशन ठीक रखने, बैंक को लाइसेंस देने या रद्द करने, कानून का पालन करवाने इत्यादि सभी चीजों का उत्तरदायित्व भारतीय रिज़र्व बैंक का ही होता हैं।
अब समझते हैं कि रेपो रेट का इनसे क्या संबंध हैं। दरअसल आप जिस भी सरकारी या निजी बैंक का नाम सुनते हैं वे समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक से पैसे लोन पर लेते हैं और उसे अपने अन्य लोगों को ब्याज पर देते हैं। अब वे बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से पैसे लेने पर उन्हें जो ब्याज चुकाते हैं उसे ही रेपो रेट कहा जाता हैं।
उदाहरण के तौर पर यदि रेपो रेट 7 प्रतिशत हैं तो भारत का कोई भी बैंक यदि भारतीय रिज़र्व बैंक से पैसे लोन पर लेता हैं तो उसे 7 प्रतिशत का ब्याज चुकाना होगा। अब वही बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से 7 प्रतिशत रेपो रेट पर पैसे लेकर उसे हम लोगों को 10 या 12 प्रतिशत ब्याज की दर पर लोन दे देता हैं। इस तरह से वह बैंक पैसे कमाता हैं।
रेपो रेट कैसे काम करती हैं
अब बात करते हैं कि भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा रेपो रेट को कम या ज्यादा करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं और इसका आमजन पर क्या प्रभाव पड़ता हैं।
रेपो रेट ज्यादा होने का मतलब
जब भी भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा रेपो रेट को ज्यादा किया जाता हैं तो इसका अर्थ होता हैं कि वह बाजार में महंगाई को काबू करना चाहता हैं। अपने इस कदम के द्वारा वह बाजार से पैसा खींचता हैं और लोगों की खरीदने की क्षमता को कम करता हैं। साथ ही चीजों के दाम को नियंत्रण में रखने और लोगों को कम खर्चा करवाने के लिए भी रेपो रेट की दर को बढ़ा दिया जाता हैं।
इसे उदाहरण से समझिये। अब हम सभी यह तो समझ ही गए होंगे कि रेपो रेट मतलब किसी भी बैंक के द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक से लिए गए लोन पर लगने वाला ब्याज। अब जो बैंक 7 प्रतिशत का ब्याज भारतीय रिज़र्व बैंक को दे रहा था तो वही रेपो रेट अब 8 प्रतिशत हो जाती हैं तो उसे ज्यादा ब्याज देना पड़ेगा।
ऐसी स्थिति में वह बैंक अपने ग्राहकों से भी ज्यादा चार्ज लेगा या उनको दिए गए लोन पर ब्याज की दर बढ़ा देगा। ब्याज बढ़ने से लोग भी कम खरीदारी करेंगे और पैसा सोच समझ कर खर्च करेंगे तथा अनावश्यक खर्चों से बचेंगे। ऐसे में महंगाई नियंत्रण में रहेगी और इन्फ्लेशन की दर भी।
रेपो रेट कम होने का मतलब
अब बात करते हैं रेपो रेट कम होने की। इसमें भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा रेपो रेट की दर को पहले की अपेक्षा कम कर दिया जाता हैं ताकि बाजार में पैसा पहुंचे और लोग खर्चा करें। एक तरह से यह बाजार में पैसों के लेनदेन को बढ़ाने के लिए किया जाता हैं।
जैसे कि पहले बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक को 7 प्रतिशत का ब्याज चुका रहे थे लेकिन वही रेपो रेट अब कम होकर 6 प्रतिशत रह जाती हैं तो बैंक पहले से कम ब्याज रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को चुकायेंगे। ऐसे में वे अपने ग्राहकों को भी पहले की अपेक्षा सस्ते दर पर लोन इत्यादि की सुविधा देंगे।
ऐसे में लोगों की खरीदारी करने की क्षमता में वृद्धि देखने को मिलेगी। बाज़ार में पैसा प्रवाहित होगा और सभी खर्चा करेंगे। तो रेपो रेट को कम करने का मतलब हुआ बाजार में पैसों के प्रवाह को बढ़ा देना।
रिवर्स रेपो रेट क्या हैं (Reverse repo rate in Hindi)
रेपो रेट के साथ-साथ आपका यह भी जानना जरुरी हैं कि रिवर्स रेपो रेट क्या होती हैं। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट हैं कि रिवर्स रेपो रेट का अर्थ हुआ किसी भी बैंक के द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को दिए गए पैसे पर मिलने वाला ब्याज।
जी हां, सही सुना आपने। हमेशा भारतीय रिज़र्व बैंक ही अन्य बैंकों को पैसे ऋण पर नही देता बल्कि अन्य बैंक भी अपना पैसा रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को ऋण पर देते हैं और उस पर ब्याज प्राप्त करते हैं। इस तरह रिवर्स रेपो रेट का अर्थ हुआ भारतीय रिज़र्व बैंक को दिए गए लोन पर उक्त बैंक को मिलने वाला ब्याज।
रिवर्स रेपो रेट की दर हमेशा रेपो रेट से कम होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सामान्यतया भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा ही अन्य बैंकों को पैसे लोन पर दिए जाते हैं। ऐसे में रेपो रेट का रिवर्स रेपो रेट से ज्यादा होना जरुरी हो जाता हैं।