उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति कौन सी है

उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति – 2020 तक उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 22 करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है. इतनी बड़ी जनसंख्या पूरे भारत में और किसी भी राज्य के पास नहीं है.

उत्तर प्रदेश में इतनी बड़ी जनसंख्या है तो जाहिर सी बात है यहां पर अलग-अलग जाति जनजातियां भी रहती होगी.

पर क्या आपको यह पता है कि उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति कौन सी है

और वह जनजाति उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कहां रहती है

इस आर्टिकल में हम यही जानने का प्रयास करेंगे.

आपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य तो होगा ही उत्तर प्रदेश के इतनी ज्यादा जनसंख्या होने के बावजूद भी

यहां मात्र 0.6% जनजातियां ही निवास करती हैं.

क्योंकि उत्तर प्रदेश मुख्यतः समतल भूमि का प्रदेश है

उत्तर प्रदेश के दक्षिण में विंध्य पर्वत के कुछ टूटी फूटी शृंखलाएँ मौजूद है जो कि पठारी भूमि है

और अधिक जनजाति यहीं पर रहती हैं आदिवासी क्षेत्र भी है उत्तर प्रदेश में

लेकिन वह बहुत ही कम है तो चली सबसे पहले यह जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति कौन सी है…

उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति –

उत्तर प्रदेश की प्रमुख जनजातियों में हैं गोंड, जौनसारी, थारू, बुक्सा, अगरिया, चेरो, धुरिया,

अटारी, पंखा, हरिया, बागा, राजगोंड, सहरिया, खरवार, महिगिरी, ओझा, भुईया, पधारी, नायक आदि जनजातियां रहती हैं.

थारू जनजाति –

थारू जनजाति उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है और लोग स्वयं को किरात वंश से संबंधित बताते हैं.

इस जनजाति के लोग उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के तराई के भाग में निवास करते हैं.

थारू जनजाति के लोग बदला विवाह प्रथा तथा तीन टिकठी विवाह प्रथा से विवाह करते हैं.

थारुओं में दोनों पक्ष के विवाह हो जाने को पक्की पौड़ी कहा जाता है.

इस जनजाति के लोग वजह नाम के त्योहार को मनाते हैं.

और दीपावली को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं. होली के दिन यह जनजाति खिचड़ी नृत्य करती है.

1980 में इन जनजातियों को विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश में प्रयास करना शुरू कर दिया था.

जौनसारी जनजाति

जौनसारी जनजाति मुख्यतः उत्तराखंड में रहती है. हिमालय पर्वतों के तलहटी पर.

लेकिन जौनसारी जनजाति के कुछ जनसंख्या उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिम हिस्से में भी रहती है.

जौनसारी समुदाय का मुख्य त्योहार विशु यानी वैशाखी है दशहरा है. दिवाली, नुड़ाई, हुई आदि यह सब त्यौहार मनाते हैं.

जिसमें से अधिकतम दीपावली के 1 माह के बाद ही यह लोग मनाते हैं. हारूल, रासो, घुमसु तांदी झेला यह सब इस जनजातियों के प्रमुख नृत्य है.

बुक्सा जनजाति

बुक्सा जनजाति उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में पाई जाती है जो कि हिमालय की तलहटी का ही हिस्सा है.

इस जनजाति की पंचायत के सर्वोच्च शिखर के व्यक्ति को तखत कहा जाता है.

उत्तर प्रदेश में बुक्सा जनजाति के विकास की परियोजना 1980 के दशक में ही उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू कर दिया था.

यह जनजाति काफी पिछड़ी हुई है

लेकिन अब इसके विकास होने के कारण यह धीरे-धीरे मुख्यधारा में मिलना शुरू हो गई है.

खरवार जनजाति

खरवार जनजाति उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में निवास करती है जोकि विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ.

सूरजवंशी, पत्बंधी दौलतबंदी खेरी, मौगाती , अरमिआजनजाति की उपजातियां हैं.

तथा बाधौस, बसंती दुल्हादेव घमासान गौरैया आदि इन के प्रमुख देवता हैं.

खरवार जनजाति करमा नृत्य करती है उसे सोनभद्र में सोनभद्र के नृत्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

गोंड जनजाति

गोंड जनजाति मुख्यतः भारत के कटि प्रदेश कर्क रेखा के आस-पास ही रहते हैं.

लेकिन विंध्य पर्वत श्रृंखला का कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश में भी आने के कारण गोंड जनजातियों को उत्तर प्रदेश में भी सम्मिलित किया जाता है.

यह मुख्यतः मिर्जापुर सोनभद्र चंदौली चित्रकूट बांदा जैसे जिलों में थोड़े बहुत पाए जाते हैं.

और यह भारत की सबसे बड़ी जनजातियों में से भी किया जाता है.

छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में गोंड जनजातियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है.

बैगा जनजाति

बैगा जनजाति मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ और झारखंड में पाई जाती है.

लेकिन उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला यूपी झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों से लगता है.

इसके कारण से ही बैगा जनजाति कि कुछ लोग उत्तर प्रदेश में भी रहते हैं.

मुख्यतः सोनभद्र में ही बैगा जनजाति के लोग पाए जाते हैं. लेकिन सोनभद्र के छत्तीसगढ़ और झारखंड सीमा से लगे हुए क्षेत्र पर ही रहते हैं.

महीगिरि

महीगिरि आदिवासी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नजीबाबाद क्षेत्र में निवास करता है.

इसके अलावा यह सहारनपुर, जलालाबाद, कीरतपुर मनेरा मंडवार और धारानगर में भी निवास करते हैं.

इस जनजाति के लोग मछुआरे होते हैं और उन्हीं से अपना संबंध रखते हैं. इस जनजाति के लोगों ने इस्लाम धर्म को अपना लिया है.

और मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ते हैं माही गिरी समुदाय के लोग अपने ही समुदाय में विवाह करते हैं

और मुस्लिम तौर-तरीकों से ही विवाह संपन्न करते हैं.

यह आदिवासी मुख्य रूप से जंगली जानवरों का शिकार करके ही उनके मांस को खाते हैं.

सहरिया जनजाति

सहरिया जनजाति के लोग मुख्यतः राजस्थान मध्य प्रदेश भिंड मुरैना जैसे जगहों पर रहते हैं.

पर यह एरिया उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम हिस्से से भी लगता है

इसलिए इटावा आगरा जालौन जैसे जिलों में भी इन जनजातियों की उपस्थिति देखी जाती है.

यह जनजाति मुख्य रूप से स्वयं को भीलो से उत्पत्ति हुआ मानते हैं.

इस जनजाति के लोगों का मुख्य व्यवसाय कंदमूल फल लकड़िया को एकत्रित करना और जंगली जानवरों का शिकार करना भी है.

सहरिया जनजाति के लोग हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं यह लोग दुलदुल घोड़ी, सरहुल नाम के नृत्य को करते हैं.

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