तमिलनाडु का नृत्य कौन सा हैं

तमिलनाडु अत्यंत प्राचीन संस्कृति वाली जगह है और किसी भी संस्कृति में उसके नृत्य और गायन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है तो आज हम जानेंगे कि तमिलनाडु का लोक नृत्य कौन सा है और वह कितना ज्यादा प्रसिद्ध है

भरतनाट्यम –

वैसे तो भरतनाट्यम पूरे भारत का सबसे उत्कृष्ट नाट्य शैली है. इसी कारण से भरतनाट्यम को भारत का राष्ट्रीय नृत्य शैली भी घोषित किया गया है. लेकिन दक्षिण भारत की यह शैली तमिलनाडु में काफी प्रचलित है जिसे शुरुआत में दासियों ने शुरू किया था. लेकिन दासियों के द्वारा शुरू किए जाने के कारण से इसे इतना सम्मान नहीं मिला। माना जाता है कि भारत मुनि ने इसे ईसा से 400 साल पहले शुरू किया था. वास्तव में भरतनाट्यम 3 शब्दों से मिलकर बना हुआ है भावम्, रागम् और तालम्। अगर इन तीनों शब्दों के पहले अक्षरों को मिला दें तो बनता है भरत. इसी के नाम पर इस नृत्य शैली को भरतनाट्यम का नाम दिया गया है.

करगट्टम

यह दृष्टि तमिलनाडु में जल के महत्व को दर्शाता है दर्शन है नृत्य वर्षा की देवी को रिझाने या नदी देवी को मनाने के लिए किया जाता है इसमें व्यक्ति सिर पर जल के पात्र को रखकर नृत्य करता है

कुम्मी

यह नृत्य ताली बजाकर किया जाता है. वह भी विशेषकर तौर पर महिलाओं के द्वारा नृत्य मंदिर उत्सव के उपलक्ष में किया जाता है.

मायिल अटाम

इस शब्द का अर्थ मोर होता है. इस लोक नृत्य में तमिलनाडु की महिलाएं मोर बनती हैं. और मोर के सदृश नृत्य करने का प्रयास करती हैं.

कावड़ीआट्टम

कावड़ी अट्टम को हर महीने की पूर्णिमा के दिन किया जाता है और इसे भगवान कार्तिकेय को समर्पित है. माना जाता है कि इस दिन देवी पार्वती ने कार्तिकेय को युद्ध में जीतने के लिए एक भाला दिया था इसकी याद में तमिल लोक नृत्य करते हैं.

ओयिलट्टम

केवल तमिल पुरुषों के द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य भगवान सुब्रमण्यम और उनकी पत्नी वल्ली को समर्पित है. इस नृत्य में पुरुष पायल मैं संगीत के साथ ताल बंद रूप में नृत्य करते हैं.

पोइक्कल कुदिराई अट्टम

यह बहुत ही कठिन नृत्य शैली है क्योंकि इसमें व्यक्ति घोड़े की एक डमी को अपने शरीर के ऊपर सहन करता है यह मुख्यतः तंजावर के आसपास किया जाता है.

काई सिलंबट्टम

ये नृत्य तमिल लोग अम्मान उत्सव नवरात्रि के समय करते हैं. इसमें व्यक्ति अपने टखनों में घुंघरू बांध देता है और नृत्य करता है.

देवरत्तम

देवरत्तम तमिलनाडु का एक प्राचीन और अपने यथावत स्वरुप में बना हुआ लोक नृत्य है, जो अभी भी मदुरै जिले के कोडांगीपट्टी कट्टबोमन वंश के वंशजों द्वारा संरक्षित है। यह वास्तव में हिन्दू मंदिर के पास केवल एक बार प्रदर्शन किया गया था और वह भी केवल उस समुदाय तक ही किया जाता था.

Previous articleतमिलनाडु का रहन सहन कैसा हैं
Next articleदुनिया का सबसे बड़ा पुल – biggest bridge in india