distance between earth and stars – एक तारा हैं UY Scuti सूर्य से लगभग 1,800 गुना बड़ा और हम से 9,500 प्रकाश वर्ष दूर।
एक और तारा है VY Canis Majoris हमारे सूर्य से 1,420 गुना बड़ा और हम से 4,892 प्रकाश वर्ष दूर।
हमारा सूर्य हमारे पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है.
लेकिन रुको इतनी ज्यादा दूर के तारे के साइज और दूरी को हमने कैसे जान लिया .
और जो सामने जान भी लिया है तो क्या यह 100% सही है।
इस प्रश्न का उत्तर तो हमें तभी मिलेगा जब हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर वैज्ञानिक किसी तारे के आकार और दूरी को कैसे नापते हैं,
तो शुरू करते हैं यह जानकर कि किसी तारे के size यानि radius को वैज्ञानिक कैसे नापते हैं?
यह जानना हमारे लिए काफी रोचक है. और यह जानकारी हमें तारों को समझने में बहुत ज्यादा मदद करेगा.
आज के आधुनिक समय में बहुत ही ज्यादा आधुनिक टेलीस्कोप विकसित कर लिए गए हैं.
इस लिए कोई पारंपरिक तरीका अपनाना वह भी तारों की दूरी नापने के लिए यह आप बहुत ही पुरानी बात हो चुकी है.
लेकिन जो टेलीस्कोप और सेटेलाइट्स यूज किए जाते हैं.
इन तारों और ग्रहों की दूरी को नापने के लिए वह भी गणित के एक आधारभूत सूत्र पर आधारित ही होता है.
और आज इस आर्टिकल में हमें यही जानना है कि वह आधारभूत संरचना क्या है?
जिसके आधार पर कोई वैज्ञानिक किसी तारे और ग्रह की दूरी को नापता है (distance between earth and stars).
तापमान और चमक जानना है ज़रूरी (star brightness) :-
इसके लिए वैज्ञानिकों को किसी तारे के दो चीजों के बारे में जानना होता है।
एक तो उस तारे का तापमान और दूसरा कि वह तारा कितना चमक रहा है यानी उस तारे की luminosity कितनी है?
तो अब वैज्ञानिक किसी दूर के तारे के तापमान को कैसे नापते हैं…. और जवाब है उस तारे के रंग से।
कोई तारा जितना ज्यादा लाल रंग का होगा वो उतना ही ठंडा होगा और वह जितना ज्यादा नीला रंग का होगा उतना ही ज्यादा गर्म होगा।
अगर कोई तारा 10,000°C तक गर्म है तो वह नीला रंग का दिखाई देगा.
और अगर कोई तारा 3,500°C से कम तापमान का होगा तो लाल रंग का दिखाई देगा।
सफेद रंग के तारे का तापमान लगभग 6,000°C से 8,000°C होता है।
तो अब हमें जान गए हैं कि वैज्ञानिक किसी तारे का तापमान कैसे नापते हैं।
अब जानते हैं कि किसी तारे की चमक को वैज्ञानिक कैसे नापते हैं?
किसी तारे की चमक उस तारे द्वारा radiate की जाने वाली एनर्जी होती है.
और उस तारे द्वारा radiate की जाने वाली एनर्जी को ही नाप के वैज्ञानिक किसी तारे के चमक नापते हैं।
बस एक बार हमें किसी तारे की चमक यानी luminosity और तापमान के बारे में पता चल जाए.
फिर हम इस फार्मूले से L = 4πR²σT4
किसी तारे के radius यानि आसान शब्दों में कहूं तो किसी तारे के size के बारे में पता लगा सकते हैं।
कैसे नापते हैं तारे की दूरी (measuring distance between earth and stars):-
लंबन विधि (Parallax method) : –
अब बात आती है कि वैज्ञानिक कि किसी तारे की हम से दूरी को कैसे नापते हैं? इसके लिए हमें पृथ्वी की सूर्य की सापेक्ष कक्षा को समझना होगा।
अब ध्यान दीजिए मान लीजिये जनवरी के महीने में पृथ्वी की स्थिति अपनी कक्षा मैं इस जगह है,
जैसा आप नीचे इमेज में देख रहे होंगे।
मान लीजिए वहां से यानी पृथ्वी के अपनी उस कक्षा की स्थिति से किसी तारे को देख रहे हैं,
तो अब हम पृथ्वी के उस स्थिति और तारे के बीच एक लाइन खींच लेते हैं।

अब मान लेते हैं पृथ्वी की स्थिति कुल 6 महीने बाद अपने कक्षा में इस जगह पर आ जाती हैै.
जैसे आप नीचे इमेज में देख रहे होंगे वहां से भी हम उस तारे और पृथ्वी के बीच एक लाइन खींच लेते हैं।

अब हमें दिखता है कि इस प्रकार एक त्रिभुज का निर्माण सा हो गया है। जिससे हमें एंगल यानि कोण मिल जाता है।
और फिर हम उसी एंगल यानि कोण की सहायता से उस तारे की दूरी पृथ्वी से नाप लेते हैं।

400 प्रकाश वर्ष से दूर के तारे की दूरी ऐसे नापते हैं :-
लेकिन हम ऐसा केवल 400 प्रकाश वर्ष दूर के तारे के साथ ही कर सकते हैं।
उससे ज्यादा दूर के तारे को नापने के लिए हमें उस तारे की brightness का सहारा लेना पड़ता है।
उस तारीख की actual brightness और पृथ्वी पर से वो तारा कितना चमकदार दिख रहा है इन दोनों चीजों की तुलना करके हम 400 प्रकाश वर्ष दूर के तारे की दूरी को नापते हैं।
यह 400 प्रकाश वर्ष दूर के तारे के सापेक्ष नापा जाता है.
और यह दूरी एक approximate दूरी होती है।
रडार मापन (Radar Measurement) :–
ये तारों और ग्रहों की दूरी के नापने का अब तक का सबसे आधुनिक तरीका है.
और इस तरीके से नापे जाने वाले तारे और ग्रहों की दूरी काफी सटीक बताई जा सकती है.\
इस तरीके में तारे और दूरी को नापने का जो आधारभूत तरीका है,
वह आधारित है प्रकाश की चाल से. इसमें होता यह है प्रकाश की किरणों को पृथ्वी पर से उस ग्रह या तारे की तरफ पॉइंट किया जाता है.
जिस ग्रह या तारे को पृथ्वी पर से नापना रहता है (distance between earth and stars).
लेकिन इस तरीके से ग्रहों और दूरी को नापने का अपना ही एक सीमा होता है.
उस सीमा से ज्यादा दूरी के तारों और ग्रहों को इस तरीके से नहीं नापा जा सकता है.
पृथ्वी पर से हमारे सौरमंडल के जितने भी ग्रह है,
उन्हें सटीकता से नापने के लिए इसी तरीका का ज्यादा उपयोग किया जाता है.
पृथ्वी से सिग्नल ट्रांसमिट करना
इस विधि में वैज्ञानिक पृथ्वी से लाइट की एक सिग्नल भेजते हैं.
उस ग्रह या उस तारे की तरफ जिसकी दूरी उन्हें नापना होता है.
उस ग्रह या तारे से वह लाइट की किरणे टकरा कर वापस पृथ्वी के तरफ आती हैं.
जिन्हें विभिन्न उपकरणों से कैप्चर कर लिया जाता है. वैज्ञानिक इन संकेतों को नोट कर लेते हैं.
लाइट की किरणों का पृथ्वी से जाने और ग्रहों से टकराकर वापस आने की टाइमिंग को नोट कर वैज्ञानिक उस ग्रह पृथ्वी की दूरी को नाप लेते हैं.
सीफीड मापन (Cepheids Measurement) :–
कुछ तारों में एक ख़ास गुण होता है कि वे अपने चमक को कुछ निश्चित समय में बढ़ाते और घटाते रहते है.
तारों का इस तरह अपने चमक को घटाना बढ़ाना भी वैज्ञानिकों को दूरी मापने के लिए एक खगोलीय मापदंड प्रदान करता है.
जिससे वैज्ञानिक बहुत दूर के लाखों प्रकाशवर्ष दूर स्थित तारों की दूरी का आंकलन कर पाते है.
सीफीड परिवर्तनशील तारे बेहद चमकीले होते है.
इन तारों की चमक सूर्य से 500 से 30,000 गुणा तक ज्यादा हो सकती है.
वैज्ञानिक सीफीड तारों की चमक और समय अवधि को बड़ी सटीकता से मापते है.
फिर प्राप्त आंकड़ो को दूरी मापांक समीकरण में स्थापित किया जाता है.
इस तकनीक से लाखों प्रकाशवर्ष दूर स्थित तारों की दूरी का आंकलन किया जाता है.