आपने कभी यह ध्यान दिया है कि आपको कभी भी अपने फेफड़ों से सांस लेने के लिए, अपने भोजन को पचाने के लिए या अपने हृदय को धड़काने के लिए कभी भी मेहनत नहीं करनी पड़ती। आपको कभी भी कॉन्शियसली brain से प्रयास नहीं करना पड़ता। यह सब ऑटोमेटिकली ही होता रहता है। कभी आपने सोचा है, ऐसा क्यों होता है, लेकिन हमारे शरीर में एक ऐसा ही सिस्टम है जो हमारे इन सिस्टम को हमेशा ही ऑटोमेटिकली रेगुलेट करता रहता है, उसे संचालित भी करता रहता है।
देखिए हमारे शरीर में नर्वस सिस्टम को दो भागों में बांट दिया गया है, अध्ययन करने के लिए… एक है हमारा सेंट्रल नर्वस सिस्टम जिसमें हमारा दिमाग और हमारा स्पाइनल कॉर्ड आता है, दोनों पर ही मैंने post लिख रखा है। सेंट्रल नर्वस सिस्टम का काम क्या होता है कि यह हमारे शरीर के बाकी हिस्सों से और sensory इंफॉर्मेशन को प्रोसेस करके मोटर इंपल्सेस को जरूरत के अनुसार भेजता हैं।
और एक है हमारा पेरीफेरल नर्वस सिस्टम, इस पेरीफेरल नर्वस सिस्टम में वह भाग आता हैं, जो पतली पतली nerves हमारे ब्रेन या फिर स्पाइनल कॉर्ड से निकलकर हमारे हाथ पाव चेस्ट स्टमक और बाकी जगहों पर जाकर फैल जाते हैं।
और अपनी कार्यप्रणाली के आधार पर pns को दो भागों में बांट दिया गया है। एक है सोमेटिक नर्वस सिस्टम इसमें हमारे शरीर में वो क्रियाएं, जिसे हम अपने इच्छा अनुसार कंट्रोल कर सकते हैं, वो शामिल है।
और दूसरा होता है ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम इसमें होता यह है कि हमारे शरीर की कुछ क्रियाएं जैसे हृदय का धड़कना, फेफड़ों द्वारा सांस लेना या हमारे भोजन का पचना जैसी क्रियाएं होती हैं, जो कि अपने आप ही होती है, मनुष्य चाहकर भी अपने कंट्रोल नहीं कर सकता है।
देखीये शरीर की वो क्रियाएं जो ऑटोमेटिकली होती है, उसे भी दो भागों में बांटा गया है एक है सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम और दूसरा है पैरा सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम। देखिए शरीर का यह जो ऑटोमेटिकली ही अपने surrounding के अनुसार एक्ट करना, जैसे किसी डर वाले सिचुएशन में हमारी धड़कन का बढ़ जाना, अगर हमारे पीछे कोई जानवर पड़ जाए तो हम जैसे डर के भागते हैं, तो वह सब चीजें करने के लिए हमें सोचना नहीं पड़ता, हमारी बॉडी ऑटोमेटिकली ही उस situation से भागना शुरू कर देती है। शरीर का इस तरीके से एक्ट करना हमारे सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम के कारण होता है और आज इस वीडियो में हम सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम की ही बात करेंगे.
देखिए जैसे इसका नाम है पेरीफेरल नर्वस सिस्टम, इसमें होता यह है कि हमारे ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड से निकलने वाले nerves हमारे शरीर के बाकी हिस्से में फैल कर शरीर को ऑटोमेटिकली कंट्रोल करते हैं। लेकिन जो सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम है उसमें होता यह है कि हमारे थोरेसिक रीजन और लंबर region निकलने वाली nerve ही सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम में हिस्सा लेती हैं।
लेकिन सबसे पहले तो आपको यह बता दें कि हमारे शरीर में एक समय में या तो पैरासिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम ऑन रहता है या फिर सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम ऑन रहता है। दोनों में से केवल एक ही एक समय पर सक्रिय रह सकते हैं।
देखिए हमारा यह शरीर बना है प्रकृति से और इसी नेचर ने ही हमारे बॉडी को डेंजर से बचाने के लिए हमारे शरीर के अंदर ही एक सिस्टम बनाया है। जब भी हमारे बॉडी को डेंजर महसूस होता है, डेंजर से मतलब जब भी हमारे शरीर को ऐसा लगता है कि हमारे जान को खतरा हो सकता है, हमारी बॉडी इस वातावरण में सरवाइव करने के लिए सही नहीं है, जैसे मान लो आपके पीछे कोई जंगली जानवर पड़ गया हो, या आप किसी ऊंचे पहाड़ के किनारे खाई के पास खड़े हो।
तो आप की धड़कन ऑटोमेटिक ली ही तेज हो जाएगी, शरीर में ब्लड का फ्लो बढ़ जाएगा, यह सब होगा सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम से और यह कैसे होगा। देखिए जैसे ही हमें कोई अनुभव होगा वातावरण से कि हमारी बॉडी डेंजर में है जैसे कहीं आग लग गई हो या कोई भी danger के सिचुएशन तो यह जो सेंसरी इंफॉर्मेशन हमारे ब्रेन तक गई है,
यह सेंसरी इंफॉर्मेशन को प्रोसेस करके brain एक मोटर इंपल्स acetecholine न्यूरोट्रांसमीटर के जरिए ganglion की तरफ भेजता हैं। अब ये ganglion क्या होता है, ganglion एक जंक्शन पॉइंट होता है, जहां पर दो न्यूरॉन आपस में आकर मिलते हैं, जैसे ही ganglion पर यह acetecholine सिग्नल देते हैं, वहां से यह stimulate कर देते हैं एड्रीनलीन न्यूरोट्रांसमीटर को, जो कि अब हमारे muscles वगैरह को सक्रिय कर देता है, रैपिड मूवमेंट के लिए। जी हां रैपिड मूवमेंट जिससे जल्दी से जल्दी बॉडी उस डेंजर सिचुएशन से बाहर निकल सके।
देखिए rapid मूवमेंट के लिए हमें चाहिए क्या-क्या? हमें चाहिए कि हमारे शरीर में ज्यादा से ज्यादा ब्लड पंप हो सके, हमारे मसल्स तक, वो effector organ जो rapid मूवमेंट करेंगे, वहां तक ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन पहुंच सके। जिससे ज्यादा से ज्यादा हमें एनर्जी मिल सके, देखिए अब होगा क्या सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम जैसे ऑन हुआ, तुरंत ही हमारी बॉडी हमारे ब्लड वेसल्स को dilate कर देगी। जिससे muscles तक ज्यादा से ज्यादा एनर्जी पहुंच सके।
और इसके लिए यह जरूरी है कि कुछ ऐसे ऑर्गन जहां पर पहले से ही ब्लड पहुंच रहा था, वहां से ब्लड को कम करके उन ऑर्गन के तरफ ज्यादा पहुंचाया जाए, जहां से बॉडी को रैपिड मूवमेंट के लिए आसानी हो। क्योंकि शरीर में ब्लड तो लिमिटेड ही है, तो अब क्या होगा कि सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम के ऑन होते ही डाइजेशन सिस्टम से ब्लड कम हो जाएगा, लिवर और किडनी जैसे जगहों से भी ब्लड कम हो जाएगा, और muscles की तरफ ब्लड ज्यादा बढ़ जाएगा।
जिससे होगा यह कि हमारा हार्टबीट तेज हो जाएगा, डाइजेशन स्लो हो जाएगा, किडनी का प्रोसेसिंग भी स्लो हो जाएगा, टेस्टिकल्स स्पर्म बनाना बंद कर देंगे, मुंह में सलाइवा बनना बंद हो जाएगा, और फेफड़े ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन को लेना शुरू कर देंगे, बॉडी में किसी भी तरीके का सेक्रेशन बंद हो जाएगा क्योंकि इसकी जरूरत डेंजर सिचुएशन से बाहर निकलने के लिए अभी फिलहाल नहीं है। और जैसे ही बॉडी एक बार डेंजर से बाहर निकली, बॉडी खुद को नार्मल करने के लिए sweating करना शुरू कर देती है, और दोबारा से बॉडी में पैरा सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम ऑन हो जाता है।
