हम जो भी सुनते हैं, जो भी देखते हैं, जो भी खाते हैं, जिसकी जिस को स्पर्श करते हैं, उन सभी को हमारा ब्रेन प्रोसेस करता है। मतलब कुल मिलाकर जो भी सेंसेशन हम महसूस करते है, असल में वह हमारा ब्रेन ही महसूस करता है। मान लीजिए आपको एक ऐसी कंडीशन पर इमेजिन करने को कहा जाए, जिसमें आपका पूरा शरीर ढंग से तो काम कर रहा है, आप सांस ले पा रहे हो आपका हृदय धड़क रहा है, लेकिन आपका ब्रेन बेसिक लेवल में काम करें। मतलब केवल sympthetic nervous system ही काम करें, ढंग से चीजों को देख ना पाए, ना हीं जो साउंड wave हमारे कान में आ रही है, उसको प्रोसेस कर पाए। आप लोगों को देख तो पाए लेकिन उनके तरफ उंगली उठाकर उन्हें पॉइंट ना कर पाए या आप जीवन भर बेहोशी की हालत में रहे, हैं ना बिल्कुल भयावह सिचुएशन…
ऐसे ही सिचुएशन होती है व्यक्ति की कोमा में, कोमा एक ग्रीक वर्ड है जिसका मतलब होता है deep. कोमा एक ऐसी सिचुएशन होती है, जिसमें व्यक्ति का शरीर जीवित रहता है, उसका हृदय धड़कता है, वह सांस ले पाता, उसके किडनी काम करती है, उसका हर एक चीज काम करता है, लेकिन व्यक्ति का brain या तो हाफ डेड हो गया होता है या पूरी तरीके से dead ही हो गया रहता है। यह ना बिल्कुल डरावनी कंडीशन।
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अगर किसी व्यक्ति को दिमाग में बुरी तरीके से चोट लग जाए, दिमाग में इंफेक्शन हो जाए या किसी भी तरीके से ब्रेन में ब्लड सप्लाई बंद हो जाए, जिससे ब्रेन को ऑक्सीजन ही ना मिल पाए तो व्यक्ति का ब्रेन डैमेज हो जाता है। व्यक्ति का ब्रेन किसी भी प्रकार के सेंसेशन को प्रोसेस ही नहीं कर पाता है, और फिर जब किसी जानने वाले या relative को यह पता चलता है कि व्यक्ति की कंडीशन इतनी बुरी हो गई है तो वह व्यक्ति उसे तुरंत ही हॉस्पिटल ले जाता है। अब Hospital में comatose patient के साथ होता क्या है, जब डॉक्टर यह डिक्लेअर कर देता है कि व्यक्ति कोमा में है तो आखिर पेशेंट को कैसा अनुभव होता है और पेशेंट के साथ डॉक्टर क्या-क्या करता है, वह सब बातों को बताते हैं।
जैसे ही पेशेंट को हॉस्पिटल ले जाया जाता है, सबसे पहले डॉक्टर पेशेंट का Electroencephalography कर उसके ब्रेन एक्टिविटी को चेक कर यह पता लगाता है कि उसका ब्रेन कितने प्रतिशत काम कर रहा है। यह सब चेक करने के बाद डॉक्टर अगर यह कंफर्म कर दें कि व्यक्ति कोमा में है, तो फिर डॉक्टर व्यक्ति के कोमा को तीन से 15 के स्केल में रैंक करता है, यहां पर 3 से मतलब यह है कि व्यक्ति को बहुत ही sever यानी गंभीर और बहुत ही डेंजरस किस्म का कोमा हो गया है, वहीं 15 का मतलब व्यक्ति सचेत है वह रिस्पॉन्ड का सकता है और उसके कोमा से रिकवर होने के चांस ज्यादा है।
अब इस बात से आप यह तो समझ ही गए होंगे कि हर coma एक जैसा नहीं होता है कुछ coma बहुत ज्यादा खतरनाक होता है तो कुछ में रिकवरी की चांद से ज्यादा होती है।
शिविर टाइप के कोमा, जैसे वेजिटेटिव स्टेट ऑफ कोमा, जिसमें व्यक्ति smile कर सकता है, बोल सकता है, लेकिन उसका ब्रेन बिल्कुल बेसिक लेवल पर काम करता है। और एक होता है catatonia कोमा जिसमें व्यक्ति का ब्रेन बिल्कुल भी रिस्पांस नहीं कर पाता है, बस व्यक्ति बेहोशी की अवस्था में दिन भर लेता रहता है और वह कुछ भी नहीं कर पाता। और एक होता है comatose पेशेंट का ब्रेन डेथ हो जाना यानी व्यक्ति के बचने का चांसेस बिल्कुल 0%. व्यक्ति का बाकी का शरीर तो काम कर रहा लेकिन उसका ब्रेन अब dead हो चुका है। गंभीर कोमा पेशेंट सपने देख पाते हैं कि नहीं यह बात अभी पूरी तरीके से क्लियर नहीं है। पर कुछ का कहना है कि ऐसे पेशेंट भी सपने देख सकते हैं।
और कुछ कम खतरनाक कोमा में पेशेंट को कुछ एक्सटर्नल stimulus, जैसे कुछ गहरे चोट देकर या फिर बार-बार कुछ रिलेटिव्स की फोटो को दिखाना, या आवाज को सुना कर जैसे फिल्मों में दिखाया जाता है कि हीरो हीरोइन की आवाज सुनकर ठीक हो जाता है, ठीक वैसे ही ऐसे पेशेंट को recover किया जा सकता है। जी हां फिल्मों में दिखाई देने वाली बात थोड़ा बहुत सही है, लेकिन पेशेंट बहुत ज्यादा सेवियर कोमैटोज ना हो। जो कोमैटोज पेशेंट रिकवर होने के बाद घर आए उन्होंने बताया कि उन्हें बहुत ही डरावने डरावने सपने भी आते थे।
लेकिन आपको बता दें पेशेंट जितना दिन तक कोमा में रहता है, उसके ठीक होने के चांसेस उतने ही ज्यादा कम होते जाते हैं।
एक बार कोई कोमा में गया तो, उसके ठीक होने के चांसेस केवल 58% रह जाता है। 4 दिन बाद केवल 7 परसेंट और 2 हफ्ते बाद तो केवल और केवल 2% ही रह जाता हैं।