हमारे ये शरीर चलता है विभिन्न पोषक तत्व से मिलने वाले एनर्जी के कारण। अगर उर्जा ना रहे तो हमारा शरीर बिल्कुल काम ही नही करेगा। हमारे शरीर के जो 12 मुख्य तंत्र हैं वह सभी ऊर्जा पर ही चलते हैं और हमें ऊर्जा मिलती है भोजन से, भोजन के ऑक्सीकरण से।
अगर जो भोजन हम खाते हैं उसका पाचन होगा ही नहीं तो हमें एनर्जी तो मिलेगी ही नहीं। साथ ही साथ वह पोषक तत्व जो हमारे शरीर को बनाते हैं जैसे प्रोटीन जो हमारे मसल्स को बनाती है और उनकी मरम्मत करते हैं विटामिंस जो मिनरल्स को absorb करने का काम करते हैं।
और कुछ खास मिनरल्स जो ब्लड जैसे चीजों को बनाते हैं वह अगर हमें ना मिले तो हमारा शरीर प्रॉपर तरीके से काम करेगा ही नहीं और यह सब हमें मिलता है भोजन से। और केवल भोजन खाने से हमें पोषक तत्व नहीं मिलता है उस भोजन का पाचन होता है जिसके बाद हमारे पेट में मौजूद blood vessels भोजन में मौजूद पोषक तत्व को अवशोषित कर शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचा देते हैं तभी हमें यह पोषक तत्व मिलते हैं।
तो अगर अब तक आप यह बात जाने ही नहीं है कि भोजन पचता कैसे हैं आखिर जो खाना हम खाते हैं वह पचता कैसे हैं?? तो अब तक आपका जीवन एक मामले में अधूरा ही है. क्योंकि यह बात आपको पता ही नहीं है कि आपका शरीर चल कैसे रहा है. तो बिना समय गवाएं बिना फालतू की बात कीये आपको तुरंत ही बताते हैं कि हमारे शरीर में भोजन पचता कैसे हैं…
भोजन कैसे पचता हैं –
जैसे ही जब हम अपने फूड को मुंह में डालते हैं हमारे खाने में हमारा सलाइवा मिल जाता है और हमारा दांत भोजन को कई सारे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने का काम करता है। यह सबसे महत्वपूर्ण काम होता है क्योंकि खाने पचने के लिए यह जरूरी है की भोजन को जितना हो सके उतनी छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाए।
फिर इन टुकड़ों के ऊपर हमारे मुंह में ही मौजूद जिसे कहते हैं बक्कल कैविटी उसके अंदर ही दातों और जीभ के बीच में salivary gland पाई जाती है जिससे सलाइवा निकलता है यह सलाइवा भोजन के साथ मिलकर भोजन को बहुत ही ज्यादा मुलायम बना देता है।
सलाइवा में ऐसे केमिकल होते हैं जो फूड को ब्रेकडाउन करते हैं। उसके बाद जैसे ही यह भोजन हमारे जीभ पर आता है हमारे जीभ में मौजूद टेस्टबडस इसके स्वाद को हमें हमारे ब्रेन तक पहुंचाते हैं। उसके बाद ही ये स्मूद फूड जो कि सलाइवा की वजह से हुआ है वह भोजन की नली से होते हुए जिसे इसोफागस (eosophagus) कहते हैं एक बैग लाइक स्ट्रक्चर जो कि स्टमक होता है वहां पर जाते हैं।
पर खास बात यह है कि जब हमारा भोजन हमारे भोजन नली से हो तो एक पेट की तरफ जाता है तब यह एक खास प्रकार के मूवमेंट जिसे पेरीस्टाल्सिस कहते हैं उस मूवमेंट के तहत हमारे पेट में जाता है जिसमें होता यह की नली अपने आपको सिकोड़ती और फैलाती है जिसके वजह से फूड आसानी से पेट की तरफ चला जाता है।
पेट मे पहुचते ही शुरू होता हैं रासायनिक क्रिया –
जैसे ही भोजन स्टमक में पहुंचता है स्टमक इस फूड को अपने इनर लाइनिंग से निकलने वाले gastric डाइजेस्टिव जूस, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और म्यूकस के साथ बिल्कुल मथ देता है यानी मिला देता है। जिसमे से मुख्यत एंजाइम फ़ूड में से प्रोटीन को अलग कर देता है वही हाइड्रोक्लोरिक एसिड भोजन को बहुत ही छोटे छोटे टुकड़ों में बांट देता है।
वही mucous एक चिपचिपा पदार्थ जो हमारे स्टमक से निकलता है और फूड में जाकर मिल जाता है वह हमारे स्टमक के दीवार को स्टमक में से ही निकलने वाले एसिड से बचाता है ताकि स्टमक की दीवार डैमेज ना हो।
स्टमक में से निकलने वाले हाइड्रोक्लोरिक एसिड की वजह से पेट में मौजूद और फूड में मौजूद कुछ हानिकारक बैक्टीरिया हमारे पेट में ही मर जाते हैं जिससे बैक्टीरिया हमारे शरीर को और ज्यादा डैमेज नहीं पहुंचा पाते हैं।
अगर आप इस चित्र को ध्यान से देख पा रहे हैं तो आप देख रहे हैं क्यों स्टमक से जुड़ा हुआ है हमारा स्मॉल इंटेस्टाइन यानी हमारी छोटी आत। हमारा फूड जो कि पेट में मौजूद कई सारे डाइजेस्टिव गैस्ट्रिक जूस के साथ मिल जाता है उसके बाद इसमें इस मिक्स मटेरियल को chyme कहा जाता है।

और यह chyme अब स्टमक से स्मॉल इंटेस्टाइन के तरफ बढ़ने लगता है। इस पूरे process में लगभग 2 घंटे का समय लगता है जो कि अलग-अलग फूड पर निर्भर करता है। जैसे यह भोजन stomach से छोटी आत की तरह बढ़ता है।
हमारी छोटी आत लगभग साडे 7 मीटर तक लंबी होती है जो कि बहुत ही ज्यादा मात्रा में coiled होती है यानी कंपलेक्स coiled स्ट्रक्चर होता है छोटी आत का।
तीन भाग में बंटा हैं छोटी आंत –
छोटी आत भी तीन भागों में बांटा रहता है सबसे ऊपर का भाग जिसे कहते हैं डुओेडिनम उसके बाद स्मॉल इंटेस्टाइन का दूसरा भाग जिसे कहते हैं जेजूनम (jejunum) फिर आता है स्मॉल इंटेस्टाइन का सबसे आखरी पार्ट ileum।
जब फूड स्टमक से स्मॉल इंटेस्टाइन में आता है तो वह सबसे पहले duodinum में आता है जोकि सबसे इंपॉर्टेंट पार्ट होता है छोटी आत का। इसमें लीवर से आया हुआ बाइल जूस और पैंक्रियाज़ से आए हुए पेनक्रिएटिक जूस फूड के साथ आकर मिल जाते हैं।
लीवर से आया हुआ बाइल जूस जो कि स्टमक से आए हुए भोजन के साथ मिल जाता है उसके वजह से भोजन में मौजूद फैक्ट्स अपने छोटे-छोटे फैटी एसिड के स्वरूप में बदल जाते हैं जिसके वजह से इनका अब्जॉर्प्शन शरीर में आसान हो जाता है।
वही पैंक्रियास से निकले हुए पेनक्रिएटिक जूस की वजह से कार्बोहाइड्रेट्स शुगर और ग्लूकोस में टूट जाते हैं वही प्रोटीन अमीनो एसिड में टूट जाते हैं। अब जब इन जूस इसकी मदद से भोजन में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण पोषक तत्व अपने छोटे-छोटे स्वरूप में आ जाते हैं तो इसके कारण से छोटी आज से यह ब्लड स्ट्रीम में absorb होने के लिए तैयार हो जाते हैं।
आंत मे होता हैं अवशोषण के लिए villies –
छोटी आत के दूसरे हिस्से जेजूनम में पहुंचते ही है छोटी आत के दीवार पर मौजूद छोटी-छोटी finger लाइक स्ट्रक्चर जिसे विलिस (villies) कहते हैं। उनमें मौजूद छोटी-छोटी ब्लड कैपिलरी में इन पोषक तत्वों का अब्जॉर्प्शन शुरू हो जाता है.
और यह प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट और फैट जैसी चीजें अब ब्लड वेसल्स में में जाकर पूरे शरीर के बाकी अंगों में पहुंचने लगते हैं और धीरे-धीरे इनका पाचन होते ही है छोटी आत के तीसरे हिस्से ileum में पहुंच जाते हैं। जहां पर भोजन में मौजूद मिनरल्स का भी अब्जॉर्प्शन शुरू हो जाता है।
जहां से हड्डियों वालों और खून जैसे चीजों को बनाने वाले खनिज तत्व शरीर के विभिन्न भागों में पहुंच जाते हैं.
छोटी आंत से बड़ी आंत मे आता हैं भोजन –
इतना सब होने के बाद भोजन छोटी आत से बड़ी आत की तरफ बढ़ जाता है जहां पर हमारे शरीर के लिए पानी का अब्जॉर्प्शन होता है और कुछ ऐसे मिनरल्स जो छोटी आत में absorb नहीं हुए रहते हैं वह बड़ी आत में से होकर ब्लड स्ट्रीम में चले जाते हैं बड़ी आत साइज में वह 1.5 मीटर तक लंबी होती है और यह छोटी आज से आकार में चौड़ा भी होती है।
जो भोजन डाइजेस्ट नहीं हो पाया होता है या फिर जो वेस्ट मटेरियल होता है वह बड़ी आत से होते हुए हमारे anus से होते हुए हमारे शरीर से बाहर निकल जाती है जिसे fecal मैटेरियल कहा जाता है और इस तरह भोजन हमारे शरीर में इतनी कठिनाइयों के बाद पचकर हमें ऊर्जा देता है।