सूर्य ग्रहण कैसे होता है – जब सूर्य ग्रहण होता है तो वातावरण में हल्का सा अंधकार फैल जाता है. पूरी रात जैसा अंधकार तो नहीं होता पर जैसे ही पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है तो वातावरण में हर एक चीज का व्यवहार बदल सा जाता है.
फूल सिकुड़ना शुरू कर देते हैं, चिड़िया चहचहाना बंद कर देती है, कुत्ते भौंकना बंद कर देते हैं, पेड़ पौधे सब कुछ अपने आप को कुछ सेकंड के लिए मानो खुद को रोक देते हैं, कुछ करने से पहले. पर हम मनुष्य तो अजीब ही हैं पहले से ही. हर चीज में टांग अड़ाना हमारी आदत सी है.
क्योंकि हम सब कुछ जानना चाहते हैं और यही जिज्ञासा को शांत करने के लिए आप इस आर्टिकल को पढ़ने आए हैं कि आखिर सूर्य ग्रहण लगता कैसे हैं??
यह कितने प्रकार का होता है और भी बहुत कुछ सूर्य ग्रहण के बारे में. तो चलिए बिना समय गवाएं यह जानना शुरू करते हैं…
सूर्य ग्रहण कैसे लगता हैं –
सूर्य ग्रहण के बारे में हम सब जानते हैं कि जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में हमारा चंद्रमा आ जाता है, बिल्कुल एक सीधी रेखा में तो यह सूर्य ग्रहण लगता है. जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आकर पृथ्वी के ऊपर छाया डालता है तो यह पृथ्वी पर 2 तरीकों से छाया डालता है.
यह डार्क वाला छाया जिसे umbra (प्रतिछाया) छाया कहते हैं और यह कम डार्क वाला छाया जिसे पैनंब्रा (प्रच्छाया) कहते हैं. ये डार्क वाला छाया जब पृथ्वी के किसी भाग पर पड़ता है तो वहां पर हमें सूर्य ग्रहण दिखाई देता है.

सूर्य ग्रहण के प्रकार –
सूर्य ग्रहण भी तीन प्रकार का होता है जिसमें से पहला होता है पूर्ण सूर्यग्रहण यानी total solar Eclipse जिसमें जब पूर्ण चंद्रमा का छाया हमारे पृथ्वी के ऊपर पड़ता है तो पूर्ण सूर्यग्रहण हमें दिखाई देता है.
यानी जब पृथ्वी चंद्रमा सूर्य बिल्कुल एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तब हमें पूर्ण सूर्यग्रहण दिखाई देता है. ध्यान रहे कि चंद्रमा का ऑर्बिट पृथ्वी के साथ कुछ डिग्री झुका हुआ है. जो कभी नॉर्थ हेमिस्फीयर की तरह तो कभी साउथ हेमिस्फीयर की तरफ.
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जब चंद्रमा अपनी इसी झुकाव के कारण पृथ्वी के ऊपर आंशिक रूप से छाया डालता है तो पृथ्वी पर आंशिक सूर्यग्रहण यानी partial solar eclipse होता है और तीसरा होता है वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular solar eclipse).
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जिसे समझने के लिए आपको थोड़ा पृथ्वी के सापेक्ष चंद्रमा के ऑर्बिट को भी समझना पड़ेगा. देखिए पृथ्वी के अराउंड चंद्रमा की कक्षा बिल्कुल गोल नहीं होती है. बल्कि थोड़ा अंडाकार होती है.
अब जब इस अंडाकार कक्षा में जब चन्द्रमा घूमता है तो चंद्रमा कभी पृथ्वी से बहुत दूर रहता है तो कभी पृथ्वी के नजदीक भी आ जाता है. जब यही चंद्रमा पृथ्वी से अपने मैक्सिमम दूरी पर होता है और पृथ्वी के ऊपर छाया भी डालता है तो इस प्रकार के बनने वाले सूर्य ग्रहण को वलयाकार सूर्यग्रहण कहते हैं.

इसमें यूनिक ये होता है कि चुकी चंद्रमा इसमें बहुत ज्यादा दूर होता है, इसलिए थोड़ा छोटा छाया बनाता है पृथ्वी के ऊपर. इसीलिए इसमें चंद्रमा की छाया के पीछे सूर्य का कुछ भाग भी दिखाई देता है.
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यह लगभग पूर्ण सूर्यग्रहण की तरह ही होता है. इसमें चंद्रमा की छाया के पेरीफेरी में दिखने वाले हिस्से को Annulus कहते हैं. इसलिए इस प्रकार के सूर्य ग्रहण को Annular Solar Eclipse कहते हैं.
सूर्य ग्रहण से सावधानी –
हां ध्यान रहे आप जब भी किसी solar eclipse को देखें तो कभी भी नंगी आंखों से सूर्य ग्रहण को देखने का प्रयास ना करें एक सेकेंड के लिए भी. बल्कि आप कुछ माइक्रोसेकंड के लिए भी ऐसा प्रयास ना करें।
कैसे पता लगाएं कि पृथ्वी गोल है
क्योंकि इससे आपकी आंख पूरी तरीके से डैमेज हो सकती है. हां आप solar eclipse वाले चश्मे को लगाकर सूर्य ग्रहण को देख सकते हैं.
और सबसे बढ़िया आप एक पेपर में होल करे और इसी होल से सोलर एक्लिप्स वाले सूर्य की रोशनी को पास कराकर इसके परछाई से सूर्य ग्रहण को देख सकते हैं. नीचे चित्र में आप इसके सेटअप को देख सकते हैं.

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